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बस छोड़ चले शुष्क सरोवर २६३ कि मैंने तुझे अपने मुंह से जीवित जाने दिया।"
इस पर कठफोड़ा अफसोस कर ही रहा था कि पास में बैठे किसी पक्षी ने कहा-“भोले पक्षी ! उपकार की छाप हृदय वालों पर ही पड़ सकती है, इन हृदयहीनों एवं हिंसकों पर नहीं।"
स्वार्थी मित्र का यही लक्षण है कि समय आने पर आंखें फिर लेता है। एक कवि ने ठीक ही कहा है
सुख में संग मिलि सुख करें, सुख में पाछे होय ।
निज स्वारव की मित्रता, मि, अधम है सोय । स्वार्थी दोषान पश्यति (स्वार्थी दोषों को नहीं देखता), इस कहावत के अनुसार स्वार्थी व्यक्ति में दूसरों के स्वार्थ को क्षति पहुंचाने से जीवन में क्या-क्या दोष उत्पन्न हो जाते हैं ? इसका विचार नहीं करता। वे पंच जो पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाते हैं, वे इस तुच्छ स्वार्थ के शिकार बनकर अपने प्रति जनता का विश्वास खो बैठते हैं। पंच ही क्यों, जो भी व्यक्ति अपने तुच्छ स्वार्थ के लिए दृारे का बड़े से बड़ा अहित करते नहीं हिचकिचाते, वे मानव शरीर में विचरण करने वार्क नरपशु हैं। अशुर, पशु या पिशाच इसी ढंग से सोचते हैं। उद्दण्डता और अनीति का आचरण करते हुए उन्हें लज्जा नहीं
आती। मनुष्य शरीर मिलने के बावजूद भी ऐसे लोगों को मानवीय अन्तः करण नहीं मिला। ऐसे अतिस्वार्थी मनुष्यों का यह नारा रहता है कि जो कुछ खाएँ, हम खाएं दूसरों का भोजन छीनकर भी हम भोजन कर के। जो कुछ अच्छा हो, हम पहनें। दूसरों को मिले या न मिले, इसकी उन्हें परवाह ना होती।
मगध सम्राट् बिम्बसार श्रेणिक का पुत्र तृणिक प्रारम्भ से ही उद्दण्ड, स्वार्थी, महत्त्वाकांक्षी और अहंकारी या। जब वह रानी चेलना के गर्भ में आया. तब चेलना को अपने पति श्रेणिक के कलेजे का मांस खाने को दोहद उत्पन हुआ। चेलना ने इस पुत्र के अशुभ होने के चिन्ह जानकर कूणिक को जन्मते ही कूरड़ी पर फिंकवा दिया था। मगर श्रेणिक के पितृहृदय ने सदा कूणिक कर प्यार किया और रक्षा भी। श्रेणिक ने घेलना को कूणिक की रक्षा के लिए विशेष हिदायतें भी दी थीं। परन्तु गुलाबी बचपन से निकलकर ज्यों ही कूणिक ने अपने महकते यौवन में प्रवेश किया, उसकी राज्यलिप्सा जाग उठी। उसने पिता से धृष्टतापूर्वक कहा- "आप वृद्ध हो गए हैं, फिर भी राज्य लोभ नहीं छूटा। मैं कब राज्य करूंगा? मेरा यौवन तीव्रगति से बीता जा रहा है।" उसने कालकुमार आदि अपने १० भाईयों को अपने अनुकूल बनाकर विद्रोह कर दिया और राज्य सिंहासन पर अधिकार जमा िलया। साथ ही उसने उपकारी पिता श्रेणिक को जेल के सींखचों में बंद कर दिया। उसने किसी को भी उनसे मिलने की अनुमति नहीं दी। अपनी माता को भी उसके आयन्त अनुरोध पर दिन में सिर्फ एक वार मिलने की अमुमति दी।