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आनन्द प्रवचन : भाग ६
संघर्ष संभव हो वहाँ आने वाले संघर्ष के गेनों में सामंजस्य एवं समन्वय स्थापित करके समाप्त कर दिया जाता है, वहाँ अतिस्वार्थ मनोवृत्ति पर अंकुश आ जाता है, और कई दफा दूसरी कोटि के व्यक्तियों की तरह म्यार्थ के साथ परमार्थ का गठजोड़ हो जाता
अब आइये, तीसरी कोटि के व्यक्तियों को समझ लें। ये दूसरों के हित का नाश करके स्वहित साधने का प्रयास करते हैं। इनकी यह प्रवृत्ति संकीर्ण स्वार्थी मनोवृत्ति की परिचायिका है। ऐसा व्यक्ति दूसरों की व्यथा नहीं समझता। वह पर दुख के प्रति उदासीन रहता है। ऐसे लोग अपना पेट भर जाने पर समझने लगते हैं कि सबका पेट भरा होगा! यही निष्ठुरता का चिन्ह है। जिसकी आत्मा दूसरे के दुख दर्द को नहीं टटोलती, जिसका अन्तःकरण फ-पीड़ा का अनुभव नहीं करता, सचमुच उसे मनुष्य-शरीर मे स्थित पाषाण कहा जाता है। ऐसे स्वार्थी का हृदय पाषाण हृदय है। अतिस्वार्थी व्यक्ति हृदयहीन हो जाता
___ स्वार्थ में अन्धा होकर मनुष्य इतना हृदयहीन हो जाता है कि अपने उपकारी को छोड़ देता है, उसके साथ निष्ठुरता का व्यवहार करता है। उसके हृदय में उपकारी द्वारा किया हुए उपकार की कोई छाप अंकित नही रहती।
बौद्ध जातक में एक कथा आती है कि एक बार बौधिसत्त्व हिमालय-प्रदेश में एक कठफोड़े पक्षी की योनि में पैदा हुए। एक बार इस कठफोड़े ने एक सिंह को वेदना से कराहते हुए देखा, जिसके गले में मांस खाते समय एक हड्डी फंस गई थी। सिंह ने कठफोड़े को निकट आए देख उससे कहा--"मेरे गले में अटकी हुई हड्डी निकाल दो।" कठफोड़े ने कहा- "हड़ी तो मैं अच्छी तरह से निकाल सकता हूं, क्योंकि मेरी चोच बहुत लम्बी है, मगर शृझे तुम्हारे मुंह में चोच डालते बहुत डर लगता है, कहीं तुम मुझे चट कर गए तो।" सिंह ने बहुत ही उम्रता दिखाते हुए अभय का वचन दिया, तब उसने चोंच डालकर गले में फंसी हड्डी निकाल दी। सिंह ने उसका बहुत उपकार माना। कई दिनों तक दोनों का मिलना-जुलना चालू रहा।
___ एक बार की बात है। कठफोड़ा बीमार पड़ गाय। इधर-उधर चलने-फिरने की स्थिति में नहीं रहा, तब भोज्य सामग्री कौन और कहां से लाता ? फलतः वह भूखा मरने लगा।। एक दिन उसे अपने। सिंह मित्र की याद आई। किसी तरह सरकता-सरकता वह सिंह के पास पहुंच और निकट के एक पेड़ पर बैठ गया। उसने देखा की सिंह भैंस का मांस खा रहा है। अतः उसने आपबीती सुनाकर सिंह से कुछ भोजन देन के लिए कहा तो पहले तो मह ने उसे पहचाना ही नहीं। जब कठफोड़े ने उसके गले में अटकी हड्डी निकालने के उपकार की बात कही तो सिंह गर्जता हुआ बोला- “मूर्ख ! क्यों व्यर्थ उपकार कीडींगे हांक रहा है ? मेरा उपकार क्या कम था