SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 293
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६६ आनन्द प्रवचन : भाग ६ पेट्राम के तीन देव सदा अंगीटी दाहिनी, सम्मुख पड़ी परात । तीन देव रक्षा करें, दाल, फुलकिया, भात । ग्वाले के तीन देव सदा भेसिया सामने, करकी लीनी काछ । तीन देव रक्षा करें, दूध, दही, और छाछ । राशन के व्यापारी के तीन देव ---- कम तोलूँ तो लै नहीं, ग्रहाक घुड़की देत । तीन देव रक्षा करें, कंवनड़, मिट्टी, रेत । फसली नेता के तीन देव--- खद्दर का जामा पहिन, उममें रख ली पोल । तीन देव रक्षा करें, जैक, घूस, कंट्रोल । है न यह स्वार्थतंत्र का बोलबाला। एक कवि एक स्वार्थवीर व्यक्ति पर व्यंग कसते हुए कहता है स्वारथ पै कान देत, धन पर ध्यान देत, दमड़ी पै प्राण देत, नेवा ना लजात हैं। दुर्जन को तान देत, हाकिम को मान देत हैं, कोरे वाक्य दान देत, मन में सिहात है। दुःखित पै तारी देत, मांगते को गारी देत, आये दुतकारी देत, देकि अनकात हैं। देत-देत लालाजू को पल की हू कल नाही, ताहू पै वे जग में, पण कहात हैं। स्वार्थ की मर्यादा, अमर्यादा यहाँ एक प्रश्न उठाया जा सकता है कि यो तो प्रत्येक व्यक्ति यहां तक कि साधु भी स्वार्थ के लिए कार्य करता है, परमार्थ नाम की कोई भी वस्तु इस गज से नापने पर तो मिलनी भी दुलभ हो जाएगी। परन्तु जो लोग यह सोचते हैं कि आत्मोन्नति या अपना उद्धार करना भी एक स्थाजमात्र है, वे भ्रम में हैं। अपना उद्धार करना संसार का उद्धार करने का प्रथम चरण है। जो अपना कल्याण म्बयं नही कर सकता, वह संसार का क्या कल्याण कर सकता है ? जो स्वयं अच्छा है, वही दूसरे को अच्छा बना सकता है। अतः आत्मोद्धार, आत्महित या
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy