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________________ हंस छोड़ चले शुष्क सरोवर २८५ "A man is called selfish nch for pursuing his own good, but for neglecting his neighbour's." 'मनुष्य अपने हित के पीछे पड़ने के लिए स्वार्थी नहीं कहलाता, मगर पड़ौसी के हित की उपेक्षा करने से ही कहलाता है।' संसार में प्रायः सभी व्यवहार मतलव का है। 'राजिभारा दूहा' में ठीक ही कहा मतलबरी मनुहार, गूंत जिमावै चूरमा। विण मतलब वै यार, बन पावै राजिया । लोकव्यवहार में स्वार्थदृष्टिपरायण जन लोकव्यवहार में देखा जाता है कि अब तक काठ का खंभा मकान का बोझा उठाता है, तब तक उस पर रंग-रोगन वित्ये जाते हैं, उसे सुवाक्यों और चित्रों से सुसज्जित किया जाता है, परन्तु जब वह सड़ जाता है, उसमें मकान का बोझ झेलने की ताकत नही रह जाती, तब उरो उखाड़कर तुल्हे में जला दिया जाता है। इस तरह हम देखते हैं कि कई लोगों की दृष्टि एकमात्र अपने स्वार्थ पर रहती है। भले ही उससे दूसरों का बड़ा भारी नुकसान होता हो, गले ही दूसरे उसके कारण दाने-दाने के मोहताज हो जाएं। दूसरे के पास भले ही एफ पाई न रहे, तब भी स्वार्थपरायण लोग अपना स्वार्थ सिद्ध किये विना नहीं रहते। ऋग्वेद (1११२११) के एक सूत्र में तीन स्वार्थियों की दृष्टि का इस प्रकार उल्लेख किया है "तक्षारिष्टं रुतभिषग् ब्राह्मा सुन्वन्तमिच्छति" 'बढई टूटी-फूटी वस्तुओं को लेने का वैद्य रोगी से धन लेने का और ब्राह्मण पूजार्थी यजमान का इच्छुक रहता है। अर्थात् इन तीनों की दृष्टि एकमात्र अपने-अपने स्वार्थ में रहती है।" स्वार्थतंत्र का बोलबाला एकतंत्र या लोकतंत्र की तो कहीं हा होती है, कही जीत, मगर स्वार्थतंत्र की तो आज संसार में प्रायः सर्वत्र जय-जयकार हो रही है। स्वार्थतंत्र के पुजारियों के कुछ नमूने देखियेभक्त के तीन देव सदा भवानी दाहिनी, सम्मुख रहे गणेश । तीन देव रक्षा करें, ब्रह्मा, विष्णु, महेश । भोजनभट्ट के तीन देव चुपड़ी रोटी सामने औ उड़द की दाल । तीन देव रक्षा करें, नोटा, घंटी, थाल ।
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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