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________________ २८४ आनन्द प्रवचन : भाग ६ प्रदान करते हैं। ये बादल औघड़दानी बनकर अपना पानी लुटात हैं। चारों आर आनन्द ही आनन्द भर रहा है। अगर मनुष्य अपने मन को उदार, महयांगी और समभावी बना ले, और इसे वश में कर ले तो ग्रही स्वगं उत्तर आएगा। परन्तु मनुष्य अतिस्वार्थी वनकर झूठे मद और मोह मे ग्रस्ता होकर, इस संसार को नरक-सा बनाये हुए हैं। अगर मनुष्य स्वार्थवृत्ति छोड़ दे और परमार्थवृत्ति से सोचे, संसार की सामग्री का उपभोग अकेला ही करने की न सोचे, सबको अपना कुटुम्धी समझे, सबसे हिल-मिलकर प्रेम से रहे तो यह संसार आज स्वो बन सकता है। घर-घर में स्वार्थ का साम्राज्य परन्तु अफसोस है, आज तो घर-घर में न्वार्थ का साम्राज्य छाया हुआ है। एक कवि इसी स्वार्थी जमाने की हवा का वर्णन करते हुए कहता है किससे करिये प्यार, यार ! खुदगर्ज जमाना है। ध्रुव । भाई कहे भुजा तुम मेरी, मैं सचा गमख्वार । जर, जमीन, जन के झगड़ों पर, बना वही ख्वार... | मुकदमा उसी ने ठाना है। यार खुदगर्ज...| स्त्री कहे प्राण तुम मेरे, जीवन के आधार । धन, सन्तान नहीं होने से, हुई विमुख घरनार । हुआ अपना बेगाना है।यार खुदगर्ज...। पुत्र कहे तुम ताज हो मेरे, में फरमांवरदार ब्याह हुआ तब आँख दिखाई, . अलग क्या व्यवहार । ना फिर आना और जाना है। यार खुदगर्ज...। मित्र कहे मैं जन्म का साम, तुम मेरे दिलदार । संकट पड़े बात नहीं पूछे, या यार को वार । ना फिर मुंह भी दिखलाना है। यार खुदगर्ज...। जब घरवालों की यह गति ई, सब है मतलबदार । बाहर वालों की क्या गिनती, उनकी कौन शुमार ? मोह करना दुःख पाना है। यार खुदगर्ज..। कितना मार्मिक तथ्य कवि ने उजागर कर दिया है। यास्तव में इसी स्वार्थ, खुदगर्जी या मतलबीपन के कारण आज परिवारों में नरक का ताण्डव मचा हुआ है। ऐसे स्वार्थमग्न परिवार अपने पड़ौसियों और समान में भी अपने स्वार्थ का जहर फैलाते हैं। अपने पड़ौमी के साथ भी उनका व्यवहार अत्यन्त मूढ़ स्वार्थ का होता है। एक मारवाड़ी कहावत है-“काम की वखत काकी, नीकर मुकै हांकी" पड़ोसी की किसी महिला से काम हो तो उसे काकी (वाधी) कहकर बुलायेंगे, परन्तु काम होते ही उसे टरका देंगे। एक पाश्चात्य लेखक व्हेटला (Whatley) कहता है.---
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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