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हंस छोड़ चले शुष्क सरोवर
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पकवान से सजा थाल लेकर आया और बाना-"बेटा ! बहुत भूखे दिखाई देते हो, लो पहले भोजन कर लो।"
युवक को संसार के इस मोह और मिथ्या स्वार्थ पर हंसी आ गई। उसने सारे वस्त्राभूषण उतार फेंके और भोजन भी नहीं लिया। उस स्थान पर सुमधुर फलों का पौधा लगाकर अपनी मणि लिये हुए युवक न जाने कहाँ चला गया। उस दिन से उसकी सूरत तो क्या, छाया के भी दर्शन न ए । हाँ, उसका रोपा हुआ वृक्ष कुछ दिनों में बड़ा होकर मीठे फल अवश्य देने लगा।
धीरे-धीरे युवक का यश सारे विश्व में गूंजने लगा। जो भी पर्वत से मणि निकलने की बात सुनता, उधर ही दौड़ा चला जाता। देखते-देखते सैंकड़ों स्वार्थी लोग मणि पाने के लालच में पर्वत की खुदाई वरने लगे। संसार में स्वार्थी और मोहग्रस्त लोग ही अन्धानुकरण करके उसके दुष्परिणाम भोगते हैं। मणि तो मिली नहीं, पर एक भारी भरकम पत्थर का टुकड़ा निकला। लोग सामूहिक रूप से जुट पड़े उस पत्थर को हटाने के लिए। पत्थर के हटते ही उसके पीछे छिपा भयंकर नाग फुकार मार कर दौड़ा। लोग भागे, पर उस सांप ने उनमें में अधिकांश को वहीं डस लिया। भागते समय वे ही लोग इस वृक्ष से टकराए, फला: नाग का विष इस वृक्ष में भी व्याप्त हो गया। उस दिन से इस वृक्ष के सब पत्ते झड़ गए। इसमें फल भी बिषले लगने लगे। नारद ! इसके बाद से आज तक किसी ने भी इस वृक्ष के नीचे बैठकर शीतल छाया प्राप्त करने का सुयोग नहीं पाया ।"
नारद ने सविस्मय पूछा-'भगवन ! क्या यह वृक्ष फिर हरा-भरा हो सकता है?" ब्रह्माजी गम्भीर होकर धीरे-धीरे बोले-"सृष्टि में कुछ भी असम्भव तो नहीं है, पर आज तो धरती के अधिकांश लोगों को वार्थ और मोहप्रपंच के नाग ने इस लिया है। लोग जितने इस शान्तिरूपी वृक्ष से ऽकराते हैं, उतने ही अधिक इसके फल विषाक्त होते चले जाते हैं। उस युवक की फरह कोई निःस्वार्थ, प्रेमी सज्जन आए और उस वृक्ष का स्पर्श करे तो यह फिर से शीतल, मधुर और सुखद फलों वाला वृक्ष क्यों नहीं बन सकता ?" नारदजी को इस समाधान से सन्तुष्टि हुई। उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि स्वार्थी और मोही लोग ही इस अमृततुल्य, स्वर्गापम संसार को जहरीला और नरकोपम बनाए हुए हैं।
संसार में मनुष्य के जीवन निर्वाह के लिए एक से एक बढ़कर सुन्दर सामग्री भरी पड़ी है। नदी, कूएँ, सरोवर, वर्षा ये सब माधुर जल का भण्डार लिए दान दे रहे हैं। धरती माता सात्त्विक अन्न खिलाती है। ये परोपकारी वृक्ष मानव-जीवन के अनमोल सहारे बनकर छाया, फल-फूल आदि मुक्तहस्तासे लुटाते हैं। आकाश में तारों की सुन्दर महफिल लगी है। सूरज और चन्द्रमा दोनो मनुष्य को प्रकाश, गर्मी और शीतलता