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________________ २८२ आनन्द प्रवचन : भाग ६ पास पहुंचे और अपनी जिज्ञासा शान्त करने हेतु उनके सामने प्रस्तुत की। ब्रह्माजी ने दीघनिःश्वास छोड़ते हुए कहा-"बहुत दिन पहले यहाँ एक युवक आया था, वह जिससे मिलता भक्ति और गाग की बातें करता था। लोगों की स्वार्थपूर्ण दृष्टि में बह पागल-सा लगता था। अतः घर वालों ने उसे निकम्मा समझकर निकाल दिया। युवक का हाथ बिगड़ा हुआ था, फिर भी वह बहुत श्रमनिष्ठ और स्वाभिमानी था। इसलिए उसने प्राकृतिक जघन जीने का विचार किया। आहार सम्बन्धी थोड़ी-सी आवश्यकताएं थीं। थोड़ा समय उसमें लगाकर बाकी समय वह निःस्वार्थ सेवा और परोपकार में बिताना चाहा था। अतः उसने अपने आहार के लिए कुछ फलों वाले पौधे लगाने का निश्चय फेया। पर बिना किसी औजार के उस कठोर धरती को खोदना कठिन काम था। युवक ने साहस नहीं छोड़ा और अपने हाथ से ही खोदने का काम शुरू किया। वह बड़ी वंठिनाई से एक हाथ से कभी एक कभी दो ढेले खोद पाता था। यों वह कई दिनों तक खोदता रहा। उसकी बहन आई और हँसती हुई निकल गई। उसकी दृष्टि में भाई जैसा मूर्ख इस संसार में कोई न था। कुछ देर में पली आई---उसके हाथ में शीतल जल से भरा घड़ा था। युवक ने बड़ी आशा . से हाथ उठाया और इस आशय का इशारा किया कि वह थोड़ा-सा पानी पिला देगी। किन्तु हाय री स्वार्थवृत्ति ! पत्नी ने जल प्लिाना तो दूर रहा, दो मीठे बोल भी न बोली। उलटे उपहास के स्वर में उसने कहा- "भागीरथ जी ! थोड़ा और खोदिए, शीघ्र ही गंगाजी निकल आएंगी।" निराश युवक धीरे-धीरे फिर मिट्टी खोदने लगा। तभी उधर से सिर पर फलों का टोकरा लिए पिता आया। भूखे युवक ने इशारे से एक नन्हा सा फल खाने को माँगा! लेकिन फल के बदले में युवक को भर्त्सना 'मिती--" पूर्ख ! दिन भर निकम्मा बैठा रहता है, तब खाना कहाँ से मिलेगा ? खाना दतहीं आकाश से टपकता है क्या ? उठ, कुछ काम कर | अपनी रोटी स्वयं कमा ।" युवक की आंखें डबडबा आई। बेचारा कुछ बोल न सका। भूखा-प्यासा ही जमीन खोदने में लगा रहा। पर मन ही मन सन्धता रहा संसार में प्रेम और दया का स्रोत न सूखे तो मनुष्य कितना खुशहाल हो सकता है। संसार साधनों के अभाव में नहीं, स्वार्थभावना से दुःख बढ़ने की सत्यता अम प्रतीत हुई है। ज्येष्ठ शुक्ला १० को प्रातःकाल जैसे ही उसने मिट्टी का ढेला उठाया, उसकी आंखें चींधिया गई। कोई बहुमूल्य मणि का कड़ा उसके हाथ आ गया। वह उस मणि को लेकर खड़ा हुआ तो लोग भ्रन में पड़ गए कि आज समय से पहले ही सूर्योदय कैसे हो गया ? जहाँ तक प्रकाश पहुंचा, लोग भागते चले आए और युवक के भाग्य की प्रशंसा करने लगे। बहन आई और भाई को नहलाने लगी। पत्नी आई और उसके शरीर पर चन्दन का लेप कर उसे बहुमूल्य वस्त्र पहना आई। पिता मधुर मिष्ठान्न व
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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