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________________ हंस छोड़ चले शुष्क सरोवर २८१ साथ वह पुनः अपनी जन्मभूमि की ओर चल पड़ा। रास्ते में बहन के गाँव मे रुककर उससे मिलने आया। बहन ने ठाठ-बाठ से उगते हुए अपने भाई को देखा तो नौकरों से कहा-मेरा भाई आया है, उसे सम्मान के साथ लेकर आओ। जब वह घर के निकट आया तो वह स्वयं दौड़ी-दौड़ी आई और भाई से गले मिली। भाई को जब अच्छे से मकान में ठहराया जाने लगा तो वह स्वयं अग्रह करके उसी पशुशाला में ठहरा। बहन ने पशुशाला को साफ करवाकर अच्छे ढंग है वहाँ भाई के लिए महफिल सजवा दी। भोजन के समय विविध मेवा मिष्ठान्न थाल में परोसकर स्वयं लाई। और भाई को भोजन कराने स्वयं पास बैठ गई। भाई ने भोजन के थाल के आस-पास चारों ओर हीरे, पन्ने, मोती और स्वर्ण मुद्राएं रख दिए । और कहने लगा—'ओ हीरो ! पन्नो ! मोतियों ! आप सब भोजन करिए। यह भोजन आपके लिए ही तो बना है।" बहन झुंझलाकर बोली- "भाई ! आज तुम्हें क्या हो गया है ? भोजन क्यों नहीं करते ? यह बहकी-बहकी-सी बातें क्यों कर रहे हो ?" भाई ने उस स्थान से खोदकर वह भोजन का ठीकरा निकाला और बहन के सामने रखकर बोला— ''यह है मेरा असली भोजन, जिसे तुमने मुझे उस दिन दिया था, पर आज का भोजन तो इन गहनों-कपड़ों का है।" बहन असलियत को समझ गई और अपनी पिछली स्वार्थपरता और अमानवीयता के व्यवहार के लिए भाई से क्षमा मांगने लगी। आखिर भाई भी भोजन कर बहन को संतुष्ट करके विदा हुआ। बन्धुओ ! गौतम ऋषि की यह उक्ति कितनी सत्य है कि सरोवर शुष्क होते ही हंस उसे छोड़कर चले जाते हैं। स्वार्थी लोगी के कारण संसार नरक बन जाता है प्रायः देखा जाता है कि ऐसे स्वार्थी लोगों के कारण यह स्वर्गोपम संसार नरक-सा बन जाता है। घर में सब लोग स्वसा और सशक्त हों, फिर भी पैसे के अभाव में एक दूसरे के स्वार्थ टकरा उठते हैं और अत्यन्त निकट के सगे सम्बन्धी भी उस व्यक्ति को अपने मन से दूर फेंक देते हैं। कई बार तो ऐसे अतिस्वार्थी लोग अपने पड़ौसियों तथा अपने हितैषी समाज के लोगों से स्वार्थसिद्धि करके झटपट दूर भाग जाते हैं। एक पौराणिक कथा है। एक बार नारदजी पीयूषपावन पर्वत की तलहटी में भ्रमण कर रहे थे। सहसा उन्होंने एक विचित्र वृक्ष देखा, जिसके तना था, डालियाँ थीं, पर वे सब ढूंठ-सी लगती थीं। हरियाली तो दूर रही, वृक्ष में एक भी पत्ती नहीं थी। हाँ, फल अवश्य थे, पर थे वे काले । उस वृक्ष के नीचे सैंकड़ों जीवजन्तु और पक्षी मरे पड़े थे। विचारशील नारदजी ने अनुमान कर लिया कि ये फल विषैले होंगे। इन जीवों ने इन्हें खाने का प्रयास किया होगा और इसी में अपने प्राणों से हाथ धो बैठे होंगे। नारदजी इस आश्चर्यजनक वृक्ष की विचित्रता ज्ञात करने के लिए ब्रह्मा जी के
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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