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________________ २८० आनन्द प्रवचन : भाग ६ इसका एक उदाहरण लीजिए एक बड़े सम्पन्न परिवार में बहन और भाई दोनों बड़े प्रेम से रहते थे। दोनों में एक-दूसरे के प्रति अत्यन्त स्नेह था। दोनों ही एक दूसरे को देखे बिना रह नहीं सकते थे। बहन की शादी एक सम्पन्न परिवार में कर दी गई। वह अपनी ससुराल चली गई। इधर माता-पिता का देहान्त हो जाने वेत बाद भाई की आर्थिक स्थिति कमजोर हो गई। व्यापार में घाटा लग गया। दुर्भाग्य से भाई फटेहाल हो गया, घर में रोटियों के भी लाले पड़ गए। उसकी पत्नी ने कहा-ऐसे हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने से क्या होगा ? आप कहीं अन्यत्र जाकर कोई रोजगार धंधा करें, ताकि हमारा गुजारा चल सके। पत्नी की बात में उसे तथ्य लगा। वा अपने शहर से चल पड़ा। फटे-पुराने कपड़े, आंखें अंदर की ओर धंसी हुई, गाला पेचके, भूख के कारण पेट भी पीठ से लगा हुआ। चारों ओर दरिद्रता झांक रही थी। फिर भी साहसपूर्वक वह आगे बढ़ा जा रहा था। रास्ते में बहन की सुसराल वाला गांव भी आ गया। सोधा-"चलो बहन से भी मिलता चलूं, शायद ऐसी हालत में कोई मदद दे दे, या व्यापार-धंधा करा दे।" मगर उसकी यह आशा निराशा में परिणत हो गई। जब भाई बहन के घर के पास आकर दरवाजे पर रुका तो उसने अपने आने की अंदर सूचना दी तो बहन ने ऊपर से उसे देखा। मन में सोचा है तो भाई ही, परन्तु है बिल्कुल फटेहाल और दरिद्र वेश में। ऐसे दीन-हीन को यदि मैं अपना भाई बताऊंगी तो यहाँ मेरी इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी। अतः ऊपर से ही नौकरों से कहा यह मेरे पीहर में चूल्हा सुलगाने वाला नौकर है। बचपन से ही मुझे बहन कहा करना था। खैर, अब जब यह यहाँ आ ही गया है तो इसे बाहर ही जहां पशु बाँधे जाते हैं, वहां ठहरा दो। __भाई ने बहन के जब ये स्वार्थी उद्गार सुने तो उसका दिल चूर-चूर हो गया पर मन ही मन अपने आप को कोसता रहा। बाा खोया-खोया सा बहन की ओर ताकता ही रहा। आखिर नौकरों ने उसे पशुशाला में ठहरा दिया। कुछ देर बाद ही उसके लिए बहन ने एक ठीकरे में भोजन परोसकर मेजा एक सूखी रोटी, बासी राब, खट्टी छाछ और थोड़ा-सा बासी साग। यह सब देते ही उसकी आंखों के आगे अंधेरा छा गया। उसने नौकर से भोजन ले लिया। नौकर के चले जाने के बाद आँखों से आंसू बहाते हुए उसने वह ठीकरा वहीं गाड़ दिया । और स्वयं बिना कुछ कहे ही भूखा का भूखा वहां से चल पड़ा। वह वहाँ से चलकर एक व्यावसायिक केन्द्र में पहुंचा। नगर के व्यापारियों में अपनी अच्छी साख जमा ली। कुछ ही वर्षों में वह मालामाल हो गया। रूठी हुई लक्ष्मी पुनः आकर वहाँ अठखेलियां करने लगी। लाखों रुपये लेकर बड़ी शान-शौकत के
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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