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________________ ३५. हंस छोड़ चले शुष्क सरोवर धर्मप्रेम बन्धुओ! गीतम कुलक पर प्रवचन श्रृंखला में अम्न मैं एक ऐसे जीवन की झांकी कराना चाहता हूं, जो अत्यन्त निठुर, निर्दयतापूर्ण, अमहानुभूतियुक्त है, वह है स्वार्थी जीवन । गौतमकुलक का यह उन्तीसवां जीवनसूत्र है। वह इस प्रकार है "चयंति सुकाणि सहाणि हंसा' 'सूखे हुए सरोवरों को हंस छोड़ देते हैं।" स्वार्थी मनोवृत्ति का रूपक यह जीवनसूत्र स्वार्थी मनोवृत्ति का रूपक है। इस रूपक के द्वारा यह अभिव्यक्त किया गया है कि जिस सरोवर पर हंस रहता था, जिस सरोवर का उसने पानी पिया था, जिसके कमलों का आस्वादन किया था, उस उपकारी सरोवर के सूखते ही वह हंस वहाँ एक दिन भी नहीं रुकता, वह उसी दिन यहाँ से उड़कर अन्यत्र चला जाता है, जहाँ उसे ये चीजें सेवन करने को मिलती हैं। उस सरोवर के सूख जाने पर भी वह स्वार्थी हंस उस उपकारी सरोवर को छोड़कर तीसरे सरोवर के पास चला जाता है। हंस के उदाहरण द्वारा बताया है कि इसी प्रकार स्वार्थी व्यक्ति भी जब तक अपने उपकारी मनुष्य से खाने-पीने आदि को मिलता रहता है, या जब तक वह धन-धान्य आदि से परिपूर्ण रहता है तब तक उसके पास रहता है और लेता रहता है, परन्तु जब वह उपकारी व्यक्ति धन-धान्य से खाली हो जाता है, उसकी स्थिति निर्धन हो जाती है, वह दूसरे को कुछ दे नही सकता, स्वयं कंगाल हो जाता है, तब वह स्वार्थी मनुष्य भी उस उपकारी को कोई न कोई बहाना बनाकर छोड़कर चल देता है, वह उसे अब फूटी आँखों नहीं सुहाता, वह स्वार्थ अपने उस उपकारी की उपेक्षा कर देता है, और अन्यत्र चला जाता है। वहाँ भी उसकी मनोवृत्ति यही रहती है कि वह मुझे देता ही रहे, मैं इससे लेता ही रहूँ। जब उसकी आर्थिक स्थिति भी खराब हो जाती है तो वह किसी तीसरे व्यक्ति के पास जा पहुंचता है।
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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