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________________ फानवान मुनि को तजते पाप : ३ २६५ करें तो हमें लगेगा कि बहुत ही अल्प वस्तुओं से हमारा जीवन निर्वाह हो सकता है। मगर वर्तमान युग में यह बात तुच्छ-सी जान पड़ती हैं। आज तो जहाँ देखो वहां आवश्यकताओं की वृद्धि पर अधिक जोर किया जाता है। आवश्यकताओं की वृद्धि से जीवन समृद्ध और उच्चस्तरीय तथा आवश्यकताओं की कमी से जीवन सिमटा हुआ, दरिद्र एवम् निम्नस्तरीय माना जाता है। विद्यार्थी जीवन से ही यह पाठ पढ़ा जाता हैं "Necessity is the micther of invention." "आवश्यकता आविष्कार की जानी है।" ऐसे लोग मानते हैं कि आवश्यकताओं की जितनी वृद्धि होगी, उतनी ही आर्थिक समृद्धि, सभ्यता की सृष्टि और संस्कृति की उन्नति होती हैं। भौतिक दृष्ट से इन बातों में कुछ तथ्य होगा, किन्तु आध्यात्मिक दृष्टि से इसपर जब गहराई से चार और अनुभव करते हैं तो एक तथ्य सूर्य के प्रकाश की तरह स्पष्ट सामने आ जात्रा है, कि आवश्यकताएँ जितनी ही बढ़ती हैं, मनुष्य भौतिकता का उतना ही अधिक गुलाम और परतंत्र होता जाता है। फिर वह उन आवश्यकताओं को उचित ठहराने लगता है और उनके बिना रह नहीं सकता। आवश्यकता की वृद्धि से समृद्धि के साथ-साथ जो अनिष्ट उत्पन्न होते हैं वे आज प्रत्यक्ष देखे जा सकते हैं। आवश्यकताओं का विस्तार ऐसा दानव है, जो भौतिक समृद्धि के ठीकरे मानव को देकर उसकी नैतिकता, सुख-शान्ति, प्रेम, आदर्श और आत्मवैभव आदि को खा जाता है। विपुल आवश्यकताओं का धनी अपनी स्वतन्त्रता खो बैठता है, वह परतंत्र और दुःखी हो जाता है। यों देखा जाए तो मनुष्य अपनी आवश्यकताएँ चाहे जितनी बढ़ा ले, प्रकृति की ओर से जितनी आवश्यकताएँ नियत हैं, प्रायः उतनी ही रहती हैं। 'आवश्यकता किसे कहते हैं ?" यह बात अगर आप सर्वप्रथम समझ लें तो आपको अकृत्रिम और कृत्रिम आवश्यकताओं का शीघ्र ही पता लग जाएगा। 'जिसके अभाव में जीवन न चल सकता हो, वह आवश्यक पदार्थ है और उसका भाव 'आवश्यकता है।' इस कसौटी पर अगर हम पदार्थों को परखते जाएँ तो हमें पता चल जाएगा कि जिंदगी टिकाने के लिए कौन-से पदार्श आवश्यक हैं, कौन से अनावश्यक पहली आवश्यक वस्तु है— हवा, जिसके बिना धाणी अधिक जी नहीं सकता। दूसरी वस्तु है — पानी । पानी के बिना भी मनुष्य दीर्घकाल तक जीवित नहीं रह सकता। ये दोनों चीजें मनुष्य को खरीदनी नहीं पड़तीं, सर्वसुलभ हैं; प्रकृति इन दोनों वस्तुओं को बिना मूल्य देती है। तीसरा आवश्यक पदार्थ है—अन्न या भांजन। हवा के बिना मानव कुछ क्षणों तक पानी के बिना कुछ दिनों तक और भोजन के बिना कुछ महीनों तक जीवित रह सकता है । इसीलिए प्रकृति ने हवा की अपेक्षा पानी को और पानी की अपेक्षा अन्न को कम सुलभ रखा है। भोजन बिना मूल्य के प्रायः प्राप्त नहीं होता, फिर वह मूल्य श्रम के रूप में हो या अन्य किसी भी रूप में। परन्तु आज स्वाद लोलुप लोग
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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