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________________ यत्नवान मुनि को तजते पाप : ३ २६१ का मार्ग काँटों का मार्ग है, नहीं नहीं, इनसे भी बढ़कर तीक्ष्ण तलवार की धार वाला पथ है, इस पर चलना कितना कठिन है ? यह आप सहज ही अनुमान लगा सकते हैं। इसीलिए उपनिषद् में एक ऋषि ने स्पष्ट कह दिया-- "क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया, दुर्ग पथस्तत् कवर्य वदन्ति ।।" कबि कहते हैं-'छुरे की तेज धार देत समान वह दुर्लध्य एवं दुर्गम पथ है।" फिर भी जो यतनावान साधक हैं, उनके लिए यह मार्ग कठिन नहीं है, ये तो मौत को हथेली पर रखकर चलते हैं, प्रतिफल सावधान रहकर आगे बढ़ते हैं। आपने सर्कस के हाथी, शेर, चीता आदि के कमाल देखे होंगे। सर्कस में एक पतली-सी डोरी पर सर्कस के खिलाड़ी किस प्रकार चल लेते हैं ? यह कल्पना की बात नहीं, प्रत्यक्ष अनुभव की बात है। क्या साबधान यतनाशील साधक सर्कस के उस खिलाड़ी से बढ़कर साबित नहीं हो सकता ?' अवश्य हो सकता है, अगर वह यतना की साधना करे तो। उपनिषद् में नचिकेता का एक आखान आता है कि वह यमाचार्य के पास आत्मविद्या-ब्रह्मज्ञान सीखने गया था। वहाँध्यमाचार्य उसकी कठोर अग्नि-परीक्षा लेने लगे। एक दिन गुरुमाता ने यम से निवेदन ख्यिा-"नचिकेता कुमार है. उसके साथ इतनी कठोरता क्यों ? १० महीने बीत गये, इसने गाय की दही और जी की सूखी रोटियों के सिवाय कुछ खाया नहीं, जबकि दूसरे बच्चे सरस, स्वादिष्ट भोजन करते रहे हैं, यह भेदभाव क्यों ?" यमाचार्य ने मुस्कराते हुए कहा—'दोबे ! तुम नहीं जानती, आत्मा ब्रह्म को प्राप्त करने का उपाय भी यही है। साधना के 'समर' कहते हैं, युद्ध में तो अपने प्राण भी संकट में पड़ सकते हैं। कोई आश्यक नहीं कि विजय ही उपलब्ध हो। अभी तो नचिकेता का अन्न-संस्कार ही कराया गया है। ब्रह्म विराट् है, अत्यन्त पवित्र है, अग्निरूप है, शरीर समर्थ न होगा तो नचिकेता इसे धारण कैसे करेगा ? छोटी सी लकड़ी दस मन बोझ नहीं उठा सकती, टूट जाती है; पर तपाई, दबाई और पीटी हुई उतनी बड़ी लोहे की छड़ पचास मन बोइ। उठा सकती है। नचिकेता का यह अन्न-संस्कार उसके अन्नमय कोष के दूषित मलावरण, रोग और विजातीय द्रव्य निकालकर उसे आत्मा के साक्षात्कार योग्य, शुद्ध और उपयुक्त बना देगा। यह साधना छरे की धार पर चलने के समान कठिन है। परन्तु नचिकेता साहसी और प्रबल आत्मजिज्ञासु है। ऐसा व्यक्ति ही यह साधना कर सकता है।" इस प्रकार गुरुमाता के विरोध के बावजूद भी नचिकेता का अन्न-संस्कार यमाचार्य ने एक वर्ष और चलाया। बन्धुओ ! साधु की यतना की साधना 'गो एक प्रकार का संग्राम है। इसमें भी योद्धा को बहुत सावधानी से मजबूती से पैर जमकर टिके रहना पड़ता है
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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