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आनन्द प्रवचन : भाग ६
को नहीं, किन्तु भक्त के हृदय के भावों को ठेखते हैं, भगवान के यहाँ भावों की कीमत है, जोर-जोर से बोलकर प्रदर्शन करने की नहीं। यही कारण है, जैन साधु के लिए पहर रात बीतने पर जोर जोर से चिल्लाकर स्वाध्याय, भजन या स्तुति, गुणोत्कीर्तन करने का निषेध है। अगर रात्रि में स्वाध्याय करना हो तो वह स्वाध्यायकाल में ही करेगा, इसी तरह भजन, स्तुति या गुणोत्कीर्तन करना होगा तो वह मन ही मन या अतीव मन्द स्वर में करेगा। वह भक्ति का प्रदर्शन नहीं करेगा। किस समय स्वाध्याय या भजन कीर्तन आदि के रूप में वाणी की प्रवृत्ति करनी है और किस समय वाचिक क्रिया के रूप में इनसे निवृत्ति करनी है, यह प्रेवेक यतनाशील साधक अवश्य करेगा।
इसी प्रकार साधक को यथासमय भजन या नामजप की प्रवृत्ति अच्छी होते हुए भी इतना विवेक तो अवश्य करना पड़ेगा कि यह भजन या नामजप की प्रवृत्ति कहीं प्रदर्शन या आडम्बर तो नहीं है ? केवल प्रतिष्ठा का साधन तो नहीं बन रही है ? अथवा यह प्रवृत्ति दूसरों को ठगने और अपने चंगुल में फंसाने का साधन तो नहीं हो रही है ? अगर ऐसा हो रहा है तो उससे कातना के बदले अयतना और पाप से मुक्ति के बदले मायारूप पाप की वृद्धि होने की संभावना है।
मुझे एक रोचक दृष्टान्त याद आ रहा है, इस विषय को स्पष्ट करने के लिए--
एक बार कहीं भयंकर दुष्काल पड़ गया। इस कारण भूखे मरते हुए कुछ लोग भगवा वस्त्रधारी बाबा संत बन गए। परन्तु साधु का वेष धारण करने से साधुता नहीं आ जाती, वह तो अन्तर की चीज है। आदर में त्याग, वैराग्य न हो तो बाह्य वेष कभी कभी धूर्तत्ता का कारण बन जाया करता है। ऐसे ही दो धूर्तों ने भी साधु वेष धारण कर लिया और वहीं जंगल में आसपाप्त दो पहाड़ियाँ थीं, उन पर अलग-अलग अपनी धूनी रमा ली। चरस और गांजे की मस्ती में वे जोर-जोर से राम-राम की धुन लगाते थे, परन्तु उनका मन कहीं और है। माया में था। उनका लक्ष्य था-अपने रामनाम के भजन एवं कीर्तन से उन पहाड़ियों से गुजरते हुए पथिकों को अपनी ओर आकृष्ट करके लूटना और जान से मार डालना ।
एक दिन एक गाँव के ठाकुर कुछ ऊर, घोड़े आदि वाहनों के साथ कहीं जा रहे थे। वे इस रास्ते से गुजरे कि ऊपर से 'राम-राम' की धुन सुनाई दी। सोचा-'यहां कोई बाबा-संन्यासी रहते हैं, चलें उनके दर्शन करके उपदेश के दो शब्द भी सुन लें।' अतः ठाकुर साहब पहाड़ी पर आए और बाबाजी को दण्डवत् प्रणाम किया। पर वे तो राम-राम ही पुकारे जा रहे थे।
इसी बीच बाबा ने एक श्वेत वस्त्रधागो पधिक को उन दोनों पहाड़ियों के बीच से गुजरता हुआ देखा । बाबा ने सोचा-'यहां ठाकुर छाती पर बैठे हुए हैं, यह खेप खाली जा रही है। इस पथिक को कैसे लूश जाए ?' अपना जाना अशक्य जानकर उस बाबा ने दूसरी पहाड़ी वाले बाबा को संकेत करने के लिए राम राम का जप छोड़कर 'राधा-कृष्ण' का जोर-जोर से रटन करना शुरू कर दिया। ठाकुर पर इसका