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________________ १६ आनन्द प्रवचन : भाग ६ सत्यशरण ग्रहण किये विना केवल कथा सुनने आदिप कोई भगवान नहीं बन सकता। इसलिए सत्यनिष्ठ होकर शरण लेने से ही भगवत्प्राप्ति होती है। महात्मा गांधी भी सत्य को भगवान मानते थे। वे कहते थे कि सत्य और अहिंसा मेरी दो आँखें हैं। उनको छोड़कर वे स्वराज्य की कल्पना भी नहीं कर सकते थे। क्योंकि ईश्वर सर्वव्यापक है, इसलिए सत्य की शरण मानने वाला साधक सारे संसार को अपना मानता है, वह सत्य के द्वारा सारे विश्व में फैल जाता है। सत्य : साधनाजीवन का मूलाधार सत्य समस्त उपलब्धियों का मूल आधार है || तंत्रसिद्धि, मंत्रसिद्धि, आदि सब सत्य पर निर्भर है। यदि मंत्र जाप के साथ मनुष्य गत्यनिष्ठ न रहे तो उसकी साधना खण्डित हो जाती है, वह प्रभावशाली नहीं हो पाती। अतः सत्य साधना जीवन का मूलाधार है। इसी प्रकार जितने भी नियम, व्रत, तप, जए। या त्याग-प्रत्याख्यान हैं, वे सब सत्य के साथ ही यथार्थ व प्रभावशाली होते हैं। अगर इनके साथ न हो तो वे दम्भयुक्त हो जाते हैं। इनमें अहंकार के कीटाणु प्रोवेष्ट हो जाते हैं। अहिंसा आदि महाव्रतों या अणुव्रतों के साथ भी सत्य अपेक्षित है। जीवन के हर मोड़ पर सत्य की आवश्यकता है। सत्य की ही सदा जय होती है, असत्य की नहीं। असत्य कागज की नौका की तरह है। वह कभी तारने वाला नहीं होता।। असत्य में कोई बल नहीं होता, सत्य में ही असीम बल होता है। कदाचित् कोई व्यक्ति असत्य का आश्रय लेकर फले-फूले तो इससे यह नहीं समझना चाहिए कि या उसके वर्तमान असत्याचरण का फल है किन्तु उसके पूर्वकृत सत्कार्यों के फलस्वरूप उसे ये सुख-सुविधाएँ मिली हैं। वर्तमान में किये जाने वाले असत्याचरण का फल। तो भविष्य में मिलेगा, सम्भव है—इस जन्म में ही मिल जाए। जिन व्यक्तियों ने आध्यात्मिक विकास किया है, उन्होंने सदैव सत्य का सहारा लिया है। सत्य की उपेक्षा करके कोई भी व्यक्ति आनकल्याण के पथ पर अग्रसर नहीं हुआ। सत्य ही साधक जीवन की शोभा है। जैसे उपख के अभाव में सारे शरीर की मुन्दरता फोकी पड़ जाती है, वैसे ही सत्य के अभाप में अन्य सब व्रतों, नियमों या त्यागों की सुन्दरता फीकी पड़ जाती है। सत्यशरण कैसे ग्रहण करें? सत्य की शरण में जाने का अर्थ है सत्य के सामने अपना सर्वस्व समर्पण कर देना । सत्य की शरण में जाने वाला मन-वचन-काय से सत्य-विचार, सत्यवाणी और मत्य आचरण करेगा। मन में कदापि असत्य-विचार व्तो प्रश्रय नहीं देगा, वाणी पर भी
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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