SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सत्यशरण सदैव सुखदायी १५ राजनीति में भी सत्यशरण का प्रभाव महात्मा गांधी ने तो राजनीति में भी तय की शरण स्वीकार कर ब्रिटिश सरकार के गुप्तचर विभाग को आश्चर्य में डाल दिया था। खुफिया पुलिस विभाग के एक ऑफिसर से गांधीजी को जब यह पता लगा कि वह उनकी दैनिक चर्या की खबर लेने आता है, तब वे उसे प्रतिदिन की रिपोर्ट किसी बात को बिना छिपाए बहुत साफ टाइप कराकर देने लगे। इसे देखकर ब्रिटिश साकार को गांधीजी की सत्यनिष्ठा और राजनीति में अगुप्तता देखकर उन पर पूरा श्विास जम गया । वास्तव में जो व्यक्ति सत्यशरण ग्रहण कर लेता है, उसे किसी से कोई बात छिपाने की जरूरत नहीं पड़ती, क्योंकि वह कोई भी ऐसा गलत काम या पाण नहीं करता, जिसे छिपाना पड़े। जिसने सत्य के कवच को धारण कर लिया है, वह निर्भय निर्द्वन्द्व होकर विचरण करता है, स्पष्ट होकर व्यवहार करता है। वह अजातशत्रु होकर समाज को अपने व्यवहार से जीत लेता है। उसके सामने किसी की असत्य बोलने की हिम्मत नहीं होती। सत्य : जगत् का आधार सत्य इसलिए भी शरण ग्रहण करने योग्य है कि वह सारे जगत् का आधार है। जब तक सत्य का एक कण भी जिन्दा है, कब तक यह पृथ्वी स्थिर रहेगी। सत्य के वल पर ही यह विश्व टिका हुआ है। संसा कासारा व्यवहार इसी आधार पर चल रहा है। मनुष्य जाति जिस दिन सत्य का पल्ला छोड़ देगी, उस दिन यह स्वयं महाविनाश के गर्त में गिर जाएगी। सत्य से जीवन और जगत् का उद्धार हो सकता है। सत्य से ही कोई परिवार, संस्था, जाति, राष्ट्र आदि चिरस्थायी रह सकते हैं। सत्य के बिना इनका व्यवहार एक दिन भी नहीं चल सकता। जिस परिवार आदि में जितनी अधिक सत्यनिष्ठा होगी, उस परिवारादि वन अस्तित्व उतना ही सुदृढ़ होगा। उसे पल्लाथारा मिल होने का उतना ही सुअवसर मिलेगा। सत्यशरण से भगवत्प्राप्ति भारतीय धर्मों में सत्य को भगवान माना गया है। जैसा कि प्रश्नव्याकरम सूत्र में कहा गया 'तं सच्चं नगर -वह सत्य ही भगवान् है। सत्य को नारायण कहा गया है। सत्यनारायण भगवान की जय बोलने, कथा सुनने एवं व्रत रखने का हिन्दुओं में बहुत प्रचलन है, किन्तु वे उसका रहस्य नहीं समझते। सत्यनारायण कोई व्यक्ति या देवता नहीं, वरन् सचाई को अन्तःकरण, व्यवहार और मस्तिष्क में प्रतिष्ठापित करने देता प्रगाढ़ आस्था ही है। जो सत्यनिष्ठ है, वही सत्य की शरण ग्रहण करता है, वहीं माण का भक्त एवं साधक है।
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy