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आनन्द प्रवचन : भाग ६
(५) लक्ष्य की दिशा में प्रयत्नशील. पुरुषार्थी (६) जय पाने वाला
ऐसे यलवान मुनि को वास्तव में पाप छोड़ देते हैं, पाप उससे किनाराकसी कर जाते हैं। कैसे छोड़ देते हैं ? और क्यों ? इस रहस्य को खोलने के लिए मैं आपके समक्ष क्रमशः इन अर्थों पर विवेचन करने का प्रयत्न करूँगा। गतिशील होना जीवनयात्री के लिए आवश्यक
मनुष्य एक यात्री है। यात्री लोकमार्ग में स्वेच्छा से खड़ा नहीं रह सकता; या तो उसे आगे बढ़ना चाहिए, अन्यथा उसे पीछे हत्या होगा। संसार में उसे स्थायी रूप से ठहरने का स्थान कहीं नहीं है। संसार एक मराय है। इस परिवर्तनशील संसार में मनुष्य एक निश्चित समय के लिए आता है और कुछ न कुछ करके चला जाता है। संसार में वह टिकने के लिए नहीं आता। एक उर्दू कवि के शब्दों में कहूँ तो
'समझे अगर इंसान तो दन-रात सफर है विश्वविख्यात उद्योगपति हेनरी फोर्ड ने अपनी आत्मकथा में लिखा है-"जहाँ तक मैं समझता हूं, जीवन कोई पड़ाव नहीं, बल्कि एक यात्रा है। जो व्यक्ति इस प्रकार का विश्वास करके सन्तोष कर लेता है कि अब मैं ठीक-ठिकाने से जम गया हूँ, उसे किसी अच्छी स्थिति में नहीं मानना चाहिए। ऐसा व्यक्ति सम्भवतः अवगति की ओर जा रहा है।...गतिशील होना ही जीवन का लक्षण है।" संयमी मुनि के लिए भी यही बात है, उसे भी अपनी जीवनयात्रा अविरल करनी पड़ती है। किसी मार्गदर्शक या सुयोग की प्रतीक्षा में उसे अपनी जीवनयात्रा को स्थगित करने का अधिकार नहीं है। यदि वह आत्मोन्नति करना चाहता है, अपने लक्ष्य तक पहुँचना चाहता है तो उसे विघ्न-बाधाओं में भी चलना पड़ेगा। चलते राम्ना ही संयम पथिक के जीवन का मुख्य उद्देश्य है। 'ऐतरेय ब्राह्मण' में स्पष्ट बताया है
पुष्मिणयो चरतौ जंघे, मष्णुरात्मा फलेग्रहिः। शेरेऽस्य सर्वे पाप्मानः, अमेण प्रपथे हताः।।
चरैवेति चरैवेति ।। "जो चलता है, उसकी जाँघे परिपुष्ट होती है, फल प्राप्ति तक उद्योग करने वाला आत्मा पुरुषार्थी होता है। प्रयलशील बाक्ति के पाप उसके श्रम से भव--भार्ग में ही नष्ट हो जाते हैं। इसलिए चलते रहो, चलो रहो।"
यह देखा गया है कि अभीष्ट दिशा की ओर चलते रहने से जीवनयात्रा सुगम हो जाती है। उसमें आने वाली प्रतिकूल परिस्थितियाँ और विघ्न-बाधाएँ अनुकूल होती जातीहैं, और मनुष्य अभ्यास करते-करते कहीं से कहीं पहुँच जाता है। अपने लक्ष्य की ओर चलने वाला यात्री स्वस्थ, स्वतन्त्र, स्ववलम्बी एवं शक्तिशाली होता है। सुदूर भविष्य उसकी आँखों में झलकने लगता है, आगे बढ़ने वाले को स्वतः ही महापुरुषों से