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________________ २१४ आनन्द प्रवचन भाग ६ एक मित्र ने मेज पर पत्रों का ढेर देखकर पाँच रुपये के टिकट मंगवाकर वे पत्र पोस्ट करवाए। कुछ समय बाद भारतेन्दुजी की स्थिति सुधरी। अतः जब उनके मित्र आते, तो वे चुपके से उनकी जेब में ५ रु० का नोट रख देते। पूछने पर कहते- आपने मुझे पाँच रुपये ऋण दिये थे, वे हैं। कई दिनों तक यही क्रम चलता रहा। एक दिन उस मित्र से कहा – “अब मुझे आपके यहां आना बंद करना पड़ेगा।" अश्रुपूर्ण नेत्रों से भारतेन्दुजी बोले - " मित्र ! आपने मुझे ऐक गाढ़े समय में सहायता दी थी, जिसे मैं जीवन भर नहीं भूल सकता। यदि मैं प्रतिनि एक पाँच रुपये का नोट देता रहूँ, तो भी आपके ऋण से उऋण नहीं हो सकता।' बन्धुओ ! ऐसा कृतज्ञ जीवन बनाएं, जिससे आपको संकट के समय अपने हितैषी (मित्र) जनों का सहयोग मिल सके। अगर आपने कृतघ्नता दिखाई तो सभी हितैषी जन आपका साथ छोड़ देंगे, आपका जीवन दुःखी हो जाएगा। इसीलिए गौतम ऋषि का संकेत है 'व्यंति मित्तापि नरं कयग्घं'
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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