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कृतघ्न नर को मित्र छोड़ते २११
जनकल्याणार्थ कई सार्वजनिक प्रवृत्तियाँ कीं गंव का वह मान्य एवं प्रतिष्ठित सेठ माना जाने लगा। उसने यहाँ भी अपना व्यापार जमा लिया।
इधर उसके चले जाने के बाद सेठ की। आर्थिक स्थिति डांवाडोल हो गई। कारोबार ठप्प हो गया। हालत इतनी तंग हो गई कि घर खर्च चलना भी मुश्किल हो गया। किसी से कुछ माँगते बड़ी शर्म आती थी। आखिर सेठानी ने इस पालित-पोषित लड़के के पास जाने के लिए सेठ को अनुरोध किया। सेठ का मन नहीं मानता था, फिर भी सेठानी के अत्यन्त आग्रह से इस दीन-हीन अवस्था में वृद्ध सेठ पैदल चलकर उसके गाँव में पहुँचा! वहाँ जाकर उसके घर का पता लगाया। लोगों ने उसकी प्रशंसा सुनकर सेठ को आशा बँधी । वह जब घर के निकट पहुँचा तो उक्त भूतपूर्व मुनीम अपने उपकारी सेठ को देखकर स्वयं पैदल दौड़ | और आदरपूर्वक उनको अपनी गद्दी पर बिठाया। सबको परिचय दिया कि ये मेरे मालिक हैं, इन्हीं की बदौलत में आज इस स्थिति में पहुँचा हूँ। आज मैं इनके पदाणेण से कृतार्थ हो गया। इस प्रकार कृतज्ञता प्रगट करके भोजन के लिए अपने साथ उन्हें घर ले गया। उसकी पत्नी ने देखा तो वह भी प्रसन्न हुई। भोजन के बाद उनके आराम करने का प्रबन्ध किया । जब वे उठे तो एकान्त में विनयपूर्वक पूछा “पिताजी ! मुझे खबर दिये बिना ही आपका इस प्रकार एकाएक वृद्ध और कृश शरीर से पधारने का क्या कारण बना ? आप कुछ उदासीन से लगते हैं। निःसंकोच सेवा फरमाइए।" यों बहुत आग्रह करने पर सेठ ने सारी परिस्थिति बताई। लड़के ने जन सहायता की बात सुनी तो उसकी आँखें डबडबा आई । बोला- “मेरे पास जो कुछ है, वह सब आपका है। मुझे तो पता ही नहीं चला, अन्यथा मैं कभी का हाजिर प्रि जाता। अब भी आप कोई चिन्ता न करें। मैं अभी वहाँ जाकर सारा काम पूर्ववत् व्यवस्थित करके आता हूँ, तब तक आप यहीं विराजें।" यों कहकर वह काफी धनराशि लेकर अपने कुछ गुमाश्तों को साथ ले सेठजी के नगर में पहुँचा । सारी बिगड़ी हुई स्थिति का अध्ययन किया। जो मकान आदि गिरवी रखे हुए थे, सब छुड़ाए। गठ के ऊपर जिनकी रकम थी, वह ब्याज सहित चुका दी और जिनसे सेठजी का लेना था, वे लोग भी राजाज्ञा के कारण यथाशक्ति चुकाकर फैसला कर गए। कुछ विश्कत पुराने और कुछ नये गुमाश्तों को रखकर व्यापार चालू किया। छह महीनों में पहले से भी बढ़िया काम चलने लगा। तब वह युवक अपने उपकारी सेठजी को इस नगर में ले आया। सब प्रकार से सेठ-सेठानी का मन प्रसन्न हो गया, वे अन्तर से इस युवक को हजारों आशीर्वाद बरसाने लगे।
बन्धुओं ! सेठ ने एक अनाथ बालक को अपने बराबर का सेठ बना दिया उस उपकार का बदला उसने बार-बार कृतज्ञता प्रकट करके चुकाया, फिर भी वह पूर्णतया उऋण तभी हो सकता है, जब वह सेठ को धर्ममार्ग में लगा दे।
अगर वह कृतघ्नता करता और इस सेठ को गिरती दशा में न संभालता तो क्या कुछ भी लाभ होता ? व्यासजी इसका उत्तर महाभारत में स्पष्ट शब्दों में देते हैं
उसे