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________________ २१० आनन्द प्रवचन भाग ६ नाम बताया तो तुरन्त एक लाख रुपये दे दिये । उस युवक ने अपने पिता से कहा तो दूसरे दिन पिता-पुत्र दोनों उसकी दूकान पर आए तो उन्हें एक लाख रुपये और दे दिये। जब उक्त सेठ ने उस व्यापारी को मानपत्र देने, उसका भाषण कराने का कहा तो उसे निःस्पृहता से इन्कार करते हुए कहा- "सेठ साहब ! यह सब करने की जरूरत नहीं है। मैंने तो कुछ किया नहीं है सिर्फ आपके महान् उपकार का बदला चुकाया है।" यों कहकर उस व्यापारी ने अम्मी पहले की रामकहानी सुनाई, जिसमें उनके द्वारा अत्यन्त विपन्न एवं असहाय अवस्था में की गई डेढ़ रुपये की सहायता का वर्णन था। इतना ही नहीं, उसने अपने नाम की तख्ती लगवाने से भी इन्कार कर दिया । यह तो हुआ सेठ के सामान्य उपकार का बदला चुकाने का उदाहरण ! कई लोग किसी व्यक्ति को अत्यन्त गरीबी अवस्था में अपने पुत्र की तरह पाल-पोसकर बड़ा करते हैं। उनके उन महान् उपकारों का बदला भी कई भाग्यशाली, कृतज्ञतावश चुकाते हैं। एक गाँव में एक बार भयंकर दुष्काल पड़ा। गाँव के महाजन गाँव छोड़कर परदेस जाने को तैयार हुए। वणिक का छह-सात वर्ष का एक छोटा-सा अनाथ बच्चा था, जिसके माता-पिता मर चुके थे, उसे भी उन्होंने साथ ले लिया। लेकिन बच्चा खाने को पूरा न मिले से रोता- चिल्लाता और मचल रचाता। अतः तंग आकर उन महाजनों ने इस लड़के को एक शहर में वहाँ के प्रमुख परोएकारी व्यापारी को सौंप दिया और स्वयं आगे चल दिये। दयालु सेठ और उसकी पत्नी ने इसे अपने पुत्र की तरह लाड़-प्यार से पाला-पोला, पढ़ाया-लिखाया। लड़का तेजस्वी और होनहार निकला। सोलह वर्ष का हुआ तब तक उसने अपनी व्यापारकुशलता र कार्यदक्षता के कारण सेठ का सारा कारोबार सँभाल लिया। सभी उसे बड़ा मुनीम कहने लगे। सेठ ने उसकी शादी भी कर दी। इस प्रकार उस अनाथ लड़के का भाग्य सितारा चमक उठा। सेठ ने विनयी, कृतज्ञ एवं विश्वसनीय समझकर उसे अपने व्यापार में पहले दो आना फिर चार आना और फिर आठ आना का हिस्सेदार बना लिया। यद्यपि वह लड़का तो प्रत्येक बार इन्कार ही करता रहा और यही कहता रहा कि मैं तो एक दीन अनाथ बच्चा था। आपने मुझे पाला-पोसा, जोग्य बनाया, इतना आगे बढ़ाया। मेरा हिस्सा किस बात का ? सब कुछ तो आपका ही है। आप ऐसा न करिए। फिर भी उपकारी सेठ ने उसकी कृतज्ञता के बदले में उनके हिस्से के लाखों रुपये उसे दिये । एक दिन उसने विनयपूर्वक सेठ से अपनी जन्मभूमि में जाकर उन सब उपकारियों को संभालने और कृतज्ञता प्रकट करने की बात कही। सेठ ने सहर्ष उसे अनुमति दी । उसके हिस्से के लाखों रुपये तथा अन्य बहुमूल्य पदार्थ उपहाररस्वरूप दिये । वह हर्षोल्लासपूर्वक अपने गाँव में पहुंचा। सबसे मिला-जुला । मकान बनवाए। अपने उपकारियों को यथायोग्य आर्थिन्त सहायता देकर सम्मानित किया।
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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