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________________ २०८ आनन्द प्रवचन : भाग ६ इससे यह स्पष्ट है कि प्रत्येक धर्मिष्ठ मानव को प्राणिमात्र से वास्ता पड़ता है। और जन्म से लेकर मृत्यु तक अगणित उपकारों से उपकृत होता रहता है। इसलिए संसार के समस्त प्राणी कृतज्ञता के पात्र हैं, न जाने कब किस प्राणी से और कब किस व्यक्ति से मानव को सहायता लेनी पड़ जाए। बहुत-सी बार एक तुच्छ समझा जाने वाला प्राणी भी मनुष्य पर महान् उपकार का बैठता है, उसके उपकार का बदला चुकाना आवश्यक है। वर्टेण्ड रसैल ने एक फुतक लिखी है— 'द वर्ल्ड, एज आई सी इट' उसमें उसने बताया है कि “संसार के प्रतियों पर जब मैं दृष्टिपात करता हूँ, तब ऐसा मालूम होता है, मेरे इस शरीर और जीवन के निर्माण में अगणित प्राणियों का उपकार है।" जैन शास्त्र भी यही बात कही हैं, यहाँ तक कि वे इस जड़ शरीर (जिसमें इन्द्रियाँ, शरीर के अवयव एवं मन आदि भी आ जाते हैं) का भी उपकार बताते हैं, जिसके सहारे के बिना धर्माचरण नहीं किया जा सकता। इसी प्रकार ग्राम, नगर, राष्ट्र, संघ (धर्मसंघ), शासन, परिवार आदि का भी बहुत उपकार है, जिनके कारण मनुष्य की सुरक्षा, जीविका, जीवन-निमगेग और जीवन का विकास हुआ है। वर्तमानकाल का मानव इनके उपकारों को भूलकर अपने अभिमान में छका रहता है। मानव के पालन-पोषण में माता-पिता तथा परिवार का, सुरक्षा में शासन का, आध्यात्मिक विकास में धर्मसंघ, धर्मगुरु आदि का तथा ज्ञान-विज्ञान, कला-कौशल आदि एवं जीविका के क्षेत्र में प्रगति के लिए ग्राम, नगर या राष्ट्र का उपकार है, उसका भी उसे भान रहना चाहिए, और इनके प्रति कृतघ्नता से बचना चाहिए। इन उपकारियों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के लिए सदा उद्यत रहना चाहिए। कृतज्ञता भारतवासियों की विभूति है । वेदों में बड़ी-बड़ी लोकोपकारी शक्तियों (अग्नि, इन्द्र, वरुण, यम, भूमि, गो आदि) के साथ-साथ मेंढक तक की स्तुति मिलती -है, जो बोलकर वर्षा के आगमन की सूचना सा है, जो कृषकों के लिए कृषि सहायक है। इसी प्रकार छोटे-छोटे जंगलों (अरण्याचे) की भी स्तुति (प्रसंसा की गई है, जिनके कारण जनता को खाने के लिए फक्त एवं अन्न मिलता है, वनस्पति सुगन्धि और ईंधन आदि भी प्राप्त होते हैं। इस प्रकार कृतज्ञता की भावनाओं में परस्पर आत्मीयता बढ़ती है। स्वभाव में कोमलता आती है, नम्रता की भावना भी रहती है। एक-दूसरे के गुणों का स्मरण करके कृतज्ञ लोग उन गुणों को स्वयं धारण करते हैं, जबकि कृतघ्नता की प्रति मूर्ति इन सब गुणों से वंचित रहता है। वाल्मीकि रामायण में श्रीराम की कृतज्ञता की भावनाओं का उल्लेख करते हुए बताया गया है कि राम मन पर नियन्त्रण रखने के कारण दूसरों द्वारा सैकड़ अपराधों को भुला देते हैं लेकिन यदि कोई उनके साथ एक बार भी किसी प्रकार का उपकार कर दे तो उसी से सदा
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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