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आनन्द प्रवचन : भाग ६
सबने एक स्वर में कहा--- "सेठ साहब ! आप जो कुछ कहें, हमें मंजूर होगा। हम लोग दुष्काल से तंग आ गए हैं। आप तो हमारे माता-पिता हैं। गावं के प्रति आपकी हित बुद्धि और शुभाकांक्षा है।"
व्यापारी ने कहा- "तो सुनो, मेरे पास जफ़ हजार मन अनाज भरा हुआ है। अपने परिवार के निर्वाह के लिए मुझे सिर्फ ६० मन अनाज चाहिए। अगले वर्ष सारे गांव के किसानों की बुवाई के लिए २०० मन आज बीज के रूप में सुरक्षित रख लेते हैं। बाकी का सारा अनाज आप सब लोग आपस में बाट लीजिए। ध्यान रहे, आपको चार महीने इसी अनाज मे चलाने हैं। चार महीने सब जी जाएंगे। बाद में वर्षा हुई तो आनन्द हो जाएगा।" ____ गाँव के सब लोगों ने बड़ी प्रसन्नता से पह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। इस प्रकार गाँव के लोगों में अन्न-वितरण से गाँव में : शान्ति स्थापित हो गई, वृद्ध व्यापारी का गाँव के प्रति जो ऋण था, वह भी कुछ अंशों में उतरा। दुःख के चार मास आनन्द से कट गए। बाहर और अन्तर का खतरा भी रहा। सबको खाने के लिए अनाज मिल गया।
बन्धुओ ! यह है, गाँव के प्रति एक व्यापारी की कृतज्ञता का ज्वलन्त उदाहरण! अगर वह व्यापारी गाँव के प्रति कृतज्ञता का परिचय देता तो उसके परिवार की तथा गाँव की क्या हालत होती ? यह आप स्वयं समझ सकते हैं।
कई बार किसी कारखाने या मिल के मजबड़ों में अपने कारखाने या मिल के प्रति कृतज्ञता की भावना नहीं होती, तब क्या नतीज होता है ? उस मिल में हड़ताल, बंद या तोड़फोड़ के कारण उत्पादन ठप्प हो जाता है, आय नहीं होती तो आखिर उसे बंद करना पड़ता है। बताइए मिल या कारखाने के अंद हो जाने पर उससे मजदूरों की जो रोजी चलती थी, वह तो बन्द हो ही जाती है न ? आजकल राजनीतिक लोगों के चक्कर में आकर मजदूर लोग भी अपने काखाने या मिल के प्रति नमकहराम, गैरवफादार एवं कृतघ्न होकर उसका कार्य ठप्प करा देते हैं, जिसका भयंकर परिणाम भी उन मजदूरों को भोगना पड़ता है। परन्तु जम कृतज्ञ मजदूर होते हैं, वे ऐसा नहीं करते, बल्कि किसी कारणवश मिल बंद होने जा रही हो तो वे स्वयं अपना आत्मभोग देकर उसे बन्द होने से रोक देते हैं।
सन् १९३० की मंदी में इंग्लैण्ड की एक पुरानी मिल घाटे में चली गई। स्टॉक का मूल्य कम रह गया और बिक्री घट गई। यिति यहाँ तक पहुँच गई कि मिल को बन्द करने के सिवाय कोई चारा न रहा। वह के मालिक मजदूरों में मुद्दतों से स्नेह सम्बन्ध चला आ रहा था। वस्तुस्थिति की सूचना देने के लिये एक दिन मालिक ने मजदूरों को बुलाकर प्रेम से कहा- "बन्धुओ ! घाटा अब इतना अधिक बढ़ गया है कि मिल अब दिवालिया घोषित होने जा रही है। हमारी और आपकी लम्बी मित्रता