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________________ कृतघ्न नर को मित्र छोड़ते २०५ लोभ और स्वार्थ में आकर अनपे देशवासियों का गला कटाया, अपने राष्ट्र को पराधीनता की जंजीरों से जकड़ने में सहाम्ता दी, अपने देश का अहित करा उनें से बंगाल का सेठ अमीचंद भी एक था, जिनसे ईस्ट इंडिया कम्पनी के जरिये अपना व्यापार चलाया और अंग्रेजों को सहायता कर भारत का अनिष्ट कराया। अगर वह कृतन न होता तो कदापि अपने राष्ट्र बत भेद विदेशियों को नहीं बताता। दूसरा कृतघ्न हुआ राजा जयचंद, जिसने शहामुद्दीन गौरी को आमंत्रित करके भारत में मुस्लिम राज्य की जड़ें जमाने में मदद की। परन्तु गांव के एक व्यापारी ने गांव गर आए हुए संकट के समय अपने उपकारी गांव के प्रति कृतन न बनकर कृतज्ञता का परिचय दिया। कुछ वर्षों पहले की घटना है। उस वर्ष भीषण दुष्काल था। वर्षा न होने से सर्वत्र अन्न का अभाव हो रहा था। गर्मी का मौसम आते ही देहातों में चोरी और लूटपाट के उपद्रव होने लगे। आसपास के गांवों के भूखे लोग जो भी हाथ में आता उठा ले जाते थे। देहातों में सभी लोग भवत्रस्त थे। एक छोटे से गांव में एक वृद्ध व्यापारी था, बड़ा दूरदर्शी, बुद्धिमान, समयमारखी और प्रतिष्ठित । गांव में व्यापार से उसने अच्छा पैसा भी कमाया था और सम्मान भी। उसने दुष्काल में उपभोग के लिए कुछ अन्न भी संग्रह कर रखा था। उसने चारों ओर की परिस्थिति को देखकर समझ लिया कि ऐसी भुखमरी के समय अपनी इनत बचाना आसान नहीं है। अतः उसने अपने परिवार के सदस्यों को एकत्र करके स्पष्ट कर दिया-... "देखो, हमने इस गांव का अन्नपानी खाया है, यहाँ की भूमि का हम गर महान् उपकार है। इस समय इस गांव तथा आसपास के गांवों पर भीषण दुष्काल संकट है। अगर ऐसे समय में हम अपना एकान्त स्वार्थ सोचकर अपनी सम्पत्ति एवं माधन बचाने में लगे रहेंगे तो हमारा जीवन खतरे में पड़ जाएगा। इसलिए इस समय अपने स्वार्थ को गौण करके हमें अपनी सम्पत्ति एवं साधनों को मुक्तभाव से गांव के दुष्काल-पीड़ितों को देकर गांव के ऋण से उऋण होने का प्रयल करना चाहिए।" एक सदस्य ने प्रश्न किया-..."सभी साधन दे देंगे तो हमारा परिवार कैसे जिंदा रहेगा?" वृद्ध पिता ने कहा----"अगर हम गांव के लोगों को जिंदा रखेंगे तो हम भी जिंदा रह सकेंगे, अन्यथा सब कुछ गँवाने की नौबत आ जाएगी।" परिवार के सभी लोगों को यह निश्चय ठीक लगा। उसी ग्राम को वृद्ध व्यापारी ने ग्रामवासियों को एकत्रित किया और कहा---''इस समय गांव-गांव में भुखमरी, चोरी और लूटपाट हो रही है। हमारा गांव भी उन अनर्थों से बच नहीं सकता। अभी हमें चार मास निकालने हैं। अगर अगले वर्ष वर्षा हुई तो हम सब च जाएंगे। मैं गाँव का अत्र पानी खाकर ही बड़ा हुआ हूँ। इसलिए कृतज्ञता के नाम में इन चार महीनों को सुख से व्यतीत करने हेतु आप सब सहमत हों तो एक उपाय बताऊँ।"
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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