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________________ सत्यशरण सदैव सुखदायी १३ है, वह कामधेनु के समान है। अगर सत्यनिष्ठ साधक पूर्णरूप से उसकी शरम में चले जाएं, उसकी आज्ञा के अधीन चलें, प्रत्येक क्रिया उसी की प्रेरणा से करें तो सत्य उनकी शुभेच्छाओं-सत्यप्रेरित शुभ संकल्पों को पूर्ण करेगा। इस युग में महात्मा गांधी का उदाहरण हमारे सामने प्रत्यक्ष ही है। जनकल्याण के उनके प्रायः सभी संकल्प पूर्ण होते गये--अस्पृश्यतानिवारण, स्वराज्य, सामूहिक सत्याग्रहण, ग्रामोद्योग, खादी आदि कार्यक्रम समाज में सफलतापूर्वक प्रविष्ट हो गए। इसके अतिरिक्त सत्य की शरण में जाने से सत्य के साक्षात्कार की जो शुभेच्छाई, वह पूर्ण होगी। सत्य की शरण में जाने का एक फल यह भी है कि उससे व्यकिा की चित्तशुद्धि होती है। चित्त में जो मलिनताएँ हैं, वे सत्य के संस्पर्श से दूर हो जाती हैं। इस प्रकार भीतर प्रकट परमात्म-सत्य की शरण लेने से मुक्त चिन्तन होगा, अन्य आध्यात्मिक गुणों का विकास होगा। व्रतभंग होने पर भी सत्यनिष्ठा का प्रभाव कई बार कोई सत्यनिष्ठ साधक भूला से या मोहवश किसी व्रत या नियम को भंग कर देता है, परन्तु अगर उस साधक कीसत्यशरण पक्की है तो सत्याधिष्ठायक देव उसका जो प्रभाव व्रत या नियम के भंग हो से पहले था, उसे कम होने नहीं देते। उसका प्रभाव बदस्तूर चलता है। एक सत्यव्रती एवं शीलनिष्ठ सेठ के घोल के प्रभाव से सैकड़ों रोगी और पीड़ित व्यक्ति उसके यहाँ आते थे और झरोखे में बैठे हुए उस सेठ के दर्शन करते ही वे रोग-शोकमुक्त हो जाते थे। सेठ के शील कायह अनूठा प्रभाव दूर-दूर तक फैला हुआ था। संयोगवश एक दिन मोहवश उसका शील भंग हो गया। इस भूल का उसके हृदय में बहुत पश्चात्ताप हुआ। रह-रहकर मन में छह अफसोस होता था कि नियत तिथि पर हजारों दुःखी लोग आएँगे, उन्हें मुँह कैसे दिखाऊँगा। इसी बीच वहां का राजा अध्यधिक बीमार हो गया। लोगों के कहने से राजा भी उस सेठ के दर्शन करने आ पहुँचा। पर लम्बी प्रतीक्षा करने पर भी सेठ नहीं आया। मुख्य सचिव आदि लोगों ने घर में आकर सेठ से दर्शन देने का आग्रह किया पर सेठ की आँखें शर्म से नीचे झुकी जा रही थी। लोगों के अत्यधिक आग्रह पर उसने अपनी शीलभ्रष्टता की कहानी सबके सामने निःसंकोच कह डाली। और यह भी कहा -"अब मुझमें वह शक्ति नहीं है, जिससे आपका रोग-मिट जाए। अतः आप अपने घर जाएँ।" परन्तु पीड़ित लोग कव मानने वाले थे। उन्होंने समझा-सेठ तो अपनी शक्ति का मद हो गया है, वह बला टालने के लिए ऐसा करता है। अतः लांगों ने जबरन पकड़कर सेठ को झरोखे में विठा दिया। सेठ ने लज्जावश नीचे नेत्र लिये बैठा रहा, पर लोगों के रोग उसका दर्शन करते ही सदा की तरह शान्त हो गए। वे स्वस्थ होकर सेठ के गुण गाते हुए रवाना हुए। स्वयं राजा ने बहुत उपकार माम। परन्तु सेठ स्वयं विस्मित था कि यह हो कैसे गया ? मेरा तो शील खंडित हो चुका था, वह विचार कर ही रहा था कि
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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