________________
२००
आनन्द प्रवचन : भाग ६
घबराने लगे। इतने में ४-५ लुटेरे वहां आ पहुंचे। जीप देखकर सोचा---'अच्छा शिकार हाथ लगा है, आज तो। बिना मेहनत के माल मिल जाएगा।" लुटेरे जीप के पास आकर बन्दूक तानकर खड़े हो गए। बोक-"जो कुछ गहने और रुपये हों हमें सौंप दो, नहीं तो यह बन्दूक तैयार है।" अचानक बन्दूकधारी लुटेरों को देखकर असहाय स्त्री-बच्चे घबरा गए। महिला अपने पाप्त जो भी गहने-पैसे थे, सब निकालकर देने की तैयारी में थी। ऐसे समय में प्राण बचाने की सबको चिन्ता होती है। इतने में महिला का पति गांव में किसी की मदद न मिलने से अकेला वापस लौटा। वे लुटेरे उन्हें मारने दौड़े, परन्तु लालटेन के प्रकाश में लंकरों की नजर उस भाई पर पड़ी। अतः लुटेरों का सरदार तुरन्त रुका और बोला—“ओ हो ! डॉक्टर साहब ! आप यहां कहाँ से?" ये लोग डॉक्टर को अच्छी तरह पहिचानते थे। एक बार लुटेरों के सरदार की भैंस के प्रसव नहीं हो रहा था, तब उसने इन्हें शुलाया था। अनेक इलाज करके उसकी मैंस और पाड़े को बचाया था। इसके अतिरिक्त गाँव के अनेक पशुओं का इलाज करके उन्हें बचाया था। इसलिए लुटेरों का सादार बोला—''डॉक्टर साहब ! आप तो हमारे महान् उपकारी हैं। मेरी भैंस और उपके बच्चे को आपने खूब अच्छी तरह बचाया है। आपका वह उपकार हम भूले नाम हैं। अब तो आपका बाल भी बांका नहीं होने देंगे। आज हमसे बहुत बड़ी भूल हुई है। हमें पता नहीं था कि यह आपकी कार है तथा इसमें आपकी धर्मपली तथा बनी हैं। हमें माफ करो।" यों कहकर जो गहने और रुपये लिये थे, वे सब वापस दे ठिंगे। गाड़ी को धक्का मारकर गांव में ले गए। वहाँ डॉक्टर का खूब स्वागत किया।। लुटेरों ने अन्त में कहा-"यदि हम उपकारी के गुण को भूल जाएँ तो हमें नरक में जाना पड़े"
बन्धुओ ! चोर लुटेरों में भी कितनी कृतज्ञता होती है, वे भी कृतघ्नता से डरते
एक अमेरिकन मासिक पत्र में एक फ्रेंच सैनिक ने अपनी आप बीतीलिखी थी कि एक बार हम मित्रराज्यों के सैनिक नाजिर के हाथ में पड़ गये। हमें अंधेरी और संकरी कोठरी में डाल दिया गया ! खूब यातानाएं दी और क्रमशः सबको घसीटकर ले जाते और पूछने पर अपने राज्य का भेद न काने पर गोली से उड़ा देते। अन्त में मेरा नम्बर आया। मुझे भी यातना देकर पूछताछ की। मैंने बताया कि जर्मनी तथा फ्रांस की सीमा पर एक छोटे से गांव में मेरा जन्म हुआ। मेरी बूढ़ी दादी ने मुझे पाला-पोसा । मेरे पड़ोस में जोन स्टोपल नामक एक शराडी रहता था। उसके जोसेफ स्टोपल नाम का एक लड़का था। जोन शराब पीकर अपने स्त्री-बच्चे को बहुत मारता, उस समय मेरी दादी जोसेफ पर दया करके अपने घर ले आती. खिला-पिलाकर रखती। एक बार जोन ने अपनी पत्नी को इतना पीटा कि बार बेभान होकर मर गई। एक बार जोन स्टोपल ने जोसेफ को खूब मारा, जिससे वह घर छोड़कर भाग गया। उसका पता न लगा। उसके वियोग में जोन बहुत विलाप कता-करता मर गया।" यह सुनते ही वह नाजी अफसर मुझे झाड़ी में ले गया और मुझ धीरे से कहा- मैं ही जोसेफ स्टोपेल