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कृतघ्न नर को मित्र छोड़ते
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रोम में उस समय गुलामी प्रथा का जो था। गुलामों को पकड़ने के लिए रोम के सैनिक इस जंगल में आए और इस तत्त्वचिन्तक को पकड़कर ले गए। उस जमाने में यह भी क्रूर प्रथा थी कि पकड़े हुए गुलामों को भूखे सिंह के आगे छोड़ा जाता और वह थोड़ी ही देर में उन्हें फाड़ खाता था। दर्शक लोग इस पर खुश होकर तालियाँ बजाते थे। इसी क्रूरता के कारण रोम साम्राज्य का पतन हुआ।
___हाँ तो उस तत्त्वचिन्तक को भूखे सिंह के सामने छोड़ा गया। सिंह छलांग मारता निकट आया, किन्तु यह क्या ! इसे फाड़कर खाने के बजाय वह प्रेम से झुककर इसके पैर चाटने लगा। कारण, यह वही सिंह था जिसके पंजे में जुभा हुआ तीखा काँटा इसने निकाला था। सिंह ने अपने उपकारी की पहिचान लिया। लोगों ने अत्यन्त
आश्चर्य प्रगट किया। तत्त्वचिन्तक ने अथ से इति तक सारी बात कहकर समाधान किया। इस पर रोम के अमीरों ने सभी गुलमों को मुक्त कर दिया। उनके मन में यह बिचार स्फुरित हुआ कि सिंह जैसे क्रूर प्राणी गं भी जब इतनी कृतज्ञता है तो जो मनुष्य कृतज्ञता से हटता है, वह पशु से भी गया योता है।
कृतघ्नता महापाप है, इसीलिए तो उसे नरक का मेहमान होना पड़ता है। एक आचार्य ने कहा है
मित्रद्रोही कृतप्तश्च, साँस्यो विश्वासघातकः ।
चत्वारो नरकं याति यावचन्द्रदिवाकरौ । मित्र के साथ द्रोह करने वाला, किये हुए उपकार को भूलने वाला, चोर और किसी के साथ विश्वासघात करने वाला, ये चारों तब तक नरक में रहते हैं जब तक सूर्य और चन्द्रमा हैं।
चोर लुटेरे शत्रु भी कृतघ्न नहीं मनुष्यों में चोर, डाकू, लुटेरे, हत्यारे आदि क्रूर से क्रूर मानव भी समय आने पर अपने प्रति किये हुए उपकार का बदला चुलाते हैं, तो फिर साधारण मनुष्य की तो बात ही क्या है ? क्रूर मानव कृतघ्नता को घोगतिघोर पाप समझते हैं, इसलिए वे अपने उपकारी के प्रति कृतघ्नता का परिचय नहीं दे।
मैं आपको कुछ वर्षों पहले की एक सत्य घटना सुनाता हूं--
एक पशु चिकित्सक अपनी पत्नी और दो बच्चों को लेकर जीप कार में बैठकर सन्ध्या समय कहीं जा रहे थे। गाड़ी वे स्वाष चला रहे थे। दुर्भाग्य से रास्ते में ही उनकी जीप का पहिया रुक गया। ये जहाँ जा रहे थे, वह ग्राम बहुत दूर था। गाड़ी की मशीन खोलकर ठीक करने की बहुत कोशिश की फिर भी गाड़ी न चली। अतः पशु चिकित्सक ने अपनी पत्नी और पुत्रों से कहा-"मैं इस पास वाले गाँव में जाता हूं। तुम लोग गाड़ी में बैठो। मैं वहां से किसी को बुलाकर लाता हूं।" डॉक्टर चले गए। रात्रि का अंधकार चारों ओर छा गया । सुनसान जगह थी। स्त्री और बच्चे तो