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आनन्द प्रवचन : भाग ६
बदला चुकाने का निश्चय किया। अतः वेस्पतिदिन एक घर से दूसरे घर तथा एक गाँव से दूसरे गाँव उड़कर जाते और जहां जो भी वस्त्र बाहर पड़ा मिल जाता उसे चोंच मे पकड़कर उठा लाते एवं सौदागर के घर पर छोड़ आते। सौदागर सिद्धों के लाये उन वस्त्रों को न तो स्वयं उपयोग में लेता न ही बचता था। वह उन्हे संभालकर रख देता
था।
कुछ लोगों ने राजा के पास गिद्धों की शिकायत लगाई, अतः राजा ने उन्हें पकड़ने के लिए जाल बिछवाए । उनमें से एक गिद्ध जब पकड़ा गया तो राजा ने उससे पूछा-"तुम मेरी प्रजा के वस्त्र क्यों उठा ले जाते हो ?"
गिद्ध ने कहा- "इस नगर के एक गौदागर ने हम दोनों की जान बचाई थी। उस ऋण को चुकाने के लिए हम बाहर पड़े हुए वस्त्र इकट्ठे करते जाते और सौदागर के यहाँ डालते जाते हैं।" राजा ने उE सौदागर को बुलाकर पूछा तो उसने कहा-"राजन् ! इन दोनों गिद्धों ने सचमुच ही मुझे वस्त्र ला-लाकर दिये हैं, परन्तु मैंने सब वस्त्र एकत्रित करके रख दिए हैं। आप कहें तो मैं उन वस्त्रों के मालिकों को उन्हें लौटाने को तैयार हूं।"
राजा ने उन गिद्धों को क्षमा कर दिया, क्योंकि उन्होंने यह कार्य प्रत्युपकार की भावना से किया था। और सौदागर को भी छोड़ दिया।
___ कहने का तात्पर्य यह है कि मांसाहारी अज्ञानी गिद्धों में भी जब कृतज्ञता की भावना है, तब विचारशील मानव में तो कृतब्रता होनी ही चाहिए --
पाश्चात्य विद्वान कोल्टन (Colton इसी सत्य को प्रकट करता है"Brute leave ingratitude toran." 'पशु भी मानव के प्रति कृतघ्नता छोड़ देते हैं।'
लोग कहते हैं कि सिंह बड़ा हिंस्र प्रापगे है, वह भूखा होने पर किसी को भी नहीं छोड़ता। परन्तु प्राणिविज्ञान एवं इतिहास कहता है कि सिंह में भी प्रत्युपकार की भावना होती है। वह अपने उपकारी के प्रो कृतघ्न नहीं होता अपितु कृतज्ञता प्रगट करता है।
वर्षों पहले की रोम की यह घटना है। रोम का एक तत्त्व चिन्तक एक जंगल में वृक्ष, लता, फल, फूल आदि के प्राकृतिक सौन्दर्य एवं तत्त्व काचिन्तन करता हुआ गुजर रहा था। तभी उसने सिंह को कलाय गर्जना सुनी, सोचा इसकी गर्जना में तो पीड़ा की चीख है, यह दहाड़ने की आवाज नहीं है। यह सोचकर वह तत्त्वचिन्तक उसी ओर गया, जिधर से ये वेदना की कण आवाजें आ रही थीं। तत्त्वचिन्तक ने सिंह को घायल अवस्था में देखा और उसके पास जाकर उसके पंजे में फंसा हुआ तीखा कांटा जोर से खींचकर निकाल दिया। कांचा निकालते ही सिंह की पीड़ा कम हो गई। अतः उसने अपने उपकारी तत्त्वचिंतक के पैर चाटकर कृतज्ञता प्रकट की और धीरे-धीरे चला गया।