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कृतघ्न नर को मित्र छोड़ते १६७
जाएँ, इसलिए भूमि पर जल छींटती हुई चल रही हूं।
वास्तव में कृतघ्न पुरुष ही महा अपवित्र एवं निन्द्य होते हैं।
हो
कहना न होगा, ऋषि का मनःसमाधान जाण्डालिनी की तात्त्विक बात सुनकर गया और वे अपनी भूल के लिए क्षमा मांग कर आगे बढ़ गए।
कुत्ते, सांग, सिंह आदि से भी नीच कृतघ्न
लौकिक व्यवहार में लोग कुत्ते को नीच मानते हैं, परन्तु शेखसादी कहते हैं "एक स्वामिभक्त कृतज्ञ कुत्ता भी कृतघ्न मनुष्य से अच्छा है। "
एक बार एक कवि ने कुत्ते को चिन्तित देखकर आश्वासन देते हुए कहा
शोकं मां कुरु कुकुर ! सत्त्वेष्कामघम इति मुघा साघो । दुष्टादपि दुष्टतरं दुष्ट्वा श्वानं कृतघ्ननामानम् । "दुष्ट सेभी दुष्टतर कृतघ्न नाम के कुत्ते को देखकर भले आदमी । तू व्यर्थ शोक मत कर कि मैं प्राणियों मे सबसे अधम हूँ। "
वास्तव में स्वामिभक्त असली कुत्ते से कृतघ्न कुत्ता ज्यादा खतरनाक है।
कुत्ता ही क्यों, सांप जैसा क्रूर प्राणी भी उपकारी का उपकार नहीं भूलता और किसी न किसी रूप में कृतज्ञता प्रगट करता है।
एक जगह कुछ ग्रामीण एक सांप को मार रहे थे, तभी उधर से आ पहुँचे सन्त एकनाथ। यह देखकर वे बोले— “भाइयों ! इसे क्यों मार रहे हो, छोड़ दो इसे । कर्मवश सांप की योनि मिली है इसे, यह है तो आत्मा ही ।" एक युवक ने कहा - "आत्मा है तो फिर काटता क्यों है ?"
एकनाथ ने कहा- "तुम लोग इस सर्प को न मारो तो यह तुम्हें क्यों काटेगा?" लोगों ने एकनाथ के कहने से उस सर्प को छोड़ देया ।
कुछ दिनों बाद एक दिन रात को एकानथ अंधेरे मे नदी स्नान करने जा रहे थे। तभी उन्हें सामने फन फैलाए खड़ा वह सर्प दिखाई दिया। उन्होंने उसे बहुत हटाना चाहा, मगर वह टस से मस न हुआ। एकनाथ मुड़कर दूसरे घाट पर स्नान करने चले गए। उजाला होने पर लौटे तो देखा कि वर्षा के कारण वहां एक गहरा खड्डा हो गया है । अगर उस सर्प ने न बचाया होता तो एकनाथ कब के ही उसमें समा चुके होते ।
गिद्ध, जो मांसाहारी पक्षी हैं, वे भी उपकारी के प्रति प्रत्युपकार करना नहीं
भूलते।
एक बार वाराणसी में एक जगह दो गिद्ध अत्यन्त कष्टदायक अवस्था में थे। एक सौदागर को उन पर दया आई। वह उन्हें एक सूखी जगह में ले गया और उन्हें गर्मी पहुंचाई। वर्षा ऋतु आई तब तक वे दोनों हृष्ट-पुष्ट हो गए थे, इसलिए वहाँ से उड़कर पर्वत पर चले गए। किन्तु उन्होंने बाणसी के उस सौदागर के उपकार का