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आनन्द प्रवचन : भाग ६
जाता है। यही अध्यात्मश्री की प्राप्ति का लक्षण है। एक पाश्चात्य विचारक डबल्यू आर० एल्जर (W.R. AHET) ने अध्यात्मश्री कामापदण्ड बताते हुए कहा है'--
"The wealth of a soul is measuryd by how much it can feel its poverty loy bow little."
__ "आत्मा की श्री का नाप यह है कि वह कितना अधिक संवेदन कर सकती है; और आत्मा की दरिद्रता का नाप यह है कि वहां केतना कम संवेदन करती है।"
परन्तु जैसा कि मैंने कहा-सत्यनिष्ठा जब व्यक्ति आत्मौपम्य की पराकाष्ठा तक पहुँच जाता है तो उसे ब्रह्मप्राप्ति या ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति होने में देर नहीं लगती, चाहे उसने किसी विश्वविद्यालय में किसी गुरु से साक्षात् यह आत्मविद्या नहीं पढ़ी हो।
ब्रह्मचारी सत्यकाम ने जब हरिद्रुमतपुत्रा महर्षि गौतम से बह्मज्ञान एवं ब्रह्म साक्षात्कार प्राप्त करने की इच्छा से उनके आश्रम में जाना चाहा तो अपनी माता से पूछा--"माँ ! मेरा नाम और गोत्र क्या है ?'
___माता ने निखालिस हृदय के कहा-पुत्र ! निराश्रित होने के कारण यौवनावस्था में मुझे अनेक गृहस्वामियों की परिचर्या करनी पड़ी थी, उसनमें से तू किसका पुत्र है, यह मैं भी नहीं जानती।। हाँ, मेरा नाम जाकता है और तू अपने जीवन में सत्यकाम है, इसलिए जब ऋषि तेरा नाम पूछे तो अपना नाम सत्यकाम जाबाल बता देना।"
सत्यकाम महर्षि गौतम के आश्रम में पहुंड्या। जब उसका नाम और गोत्र उन्होंने पूछा तो उसने अपनी माँ के कहे शब्द अक्षरशः दोहरा दिये।
महर्षि क्षणभर विचार करके बोले-"त्स ! तूने इतना गहन सत्य कह दिया, इसलिए निःसन्देह तू ब्राह्मण गोत्र है और ब्रह्मप्राप्ति का अधिकारी है। तूने सत्य का परित्याग न कर अपनी विशिष्टता प्रतिपादित की, इसलिए मैं तुझे ब्रह्मज्ञान दूंगा।"
सत्यकाम जाबाल को आश्रम में प्रविष्ट करके महर्षि गौतम ने पहला पाठ यही पढ़ाया--- "ब्रह्मज्ञान पुस्तकों की नहीं, अनूभूमि की भाषा में, आत्मा के पूर्ण निष्कपट होने पर ही पढ़ा जाता है। जो किसी भी सता को अपने असली रूप में स्वीकार कर सकने का साहस रखता है, उसे शीघ्र ही ब्रह्मक्तान प्राप्त हो जाता है।" और एक दिन सत्यकाम जाबाल को गोपालन करते-करते ब्रह्मज्ञान प्राप्त हो गया।
वास्तव में सत्य के स्वरूप को जानने वाला और सत्यभाषण तथा सत्य-आचरण करने वाला ही सत्यस्वरूप ब्रह्मा (परमात्मा) को जान सकता है। इसी कारण सत्यकाम जाबाल को ब्रह्मज्ञान जैसी अलौकिक आत्मसमृद्धि प्राप्त हुई। गौतमकुलककार महर्षि गौतम भी यही बात कहते हैं।---
'सच्चे ठियतं भगर सिरी य' जो अन्त तक सत्य में स्थित रहता है, उसे सब प्रकार की श्री प्राप्त होती है। बन्धुओ ! मैं बहुत विस्तार से सत्यनिष्ठ को प्राप्त होने वाली भौतिक और आध्यात्मिक श्री के बारे में कह गया हूँ। आप भी सत्यनिष्ठ जीबन बनाकर समय श्री को उपलब्ध करें।