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सत्यनिष्ठ पाता है श्री को:२
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वास्तव में खानुभूसा की सत्यनिष्ठा, सत्य-आचरण के कारण समृद्धि, कीर्ति, प्रतिष्ठा, परिवार में परस्पर प्रेम और सेवा की भावना आदि के रूप में उन्हें भौतिक श्री मिली और जीवन के संध्याकाल में वे आध्यातिक श्री बढ़ाने में जुट गये।
इस तरह सत्य समस्त सच्ची प्राप्तियों कत मूलाधार है। वह स्वयं एक प्रकार की विमल विभूति है। यही साधन, मार्ग और लय है। वास्तव में सत्य पर चलने वाले व्यक्ति की प्रत्येक सदिच्छा पूर्ण होकर रहती है। पारसी धर्म के प्रसिद्ध ग्रन्थ यश्न (हा ५१/१) में भी इसी बात का समर्थन किया गया है
___“अषा अँतूर-चर इती। श्योयनाइस् मज्दा वहिश्तम् ।
'अषा-सत्य पर चलता हुआ मनुष्य अपनी इस निर्णय करने वाली शक्ति से अपने हृदय की बड़ी से बड़ी इच्छा पूरी कर सकता है।" ।
और योगदर्शन में तो पतंजलि ऋषि ने सबसे बड़ी कह दी, सत्यनिष्ठा के परिणाम के सम्बन्ध में
'सत्यप्रतिष्ठायां क्रियाकलाश्रयत्वम् ।' जीवन में सत्य पूर्णरूप से प्रतिष्ठित स्थित) हो जाने पर उसकी मनोवांछा के साथ जैसी मानसिक, वाचिक, कायिक क्रिया होती है तदनुसार वह फलाश्रयी हो जाती है। यानी उसके मन से जो सत्य विचार उठा है, वचन से जो सत्यवाणी निकलती है
और काया से जो सत्यचेष्टा होती है, तदनुसार ही वे परिणत हो जाते हैं। सत्यनिष्ठ व्यक्ति का वचन अमोघ हो जाता है। इस प्रकार की उपलब्धि या सिद्धि भौतिक श्री का उत्कृष्ट रूप है, जो सत्यनिष्ठ को प्राप्त है।जाती है।
आध्यात्मिक श्री क्या और कैसे ? मैं पहले कह चुका हूं कि सत्यनिष्ठ में जैसे भौतिक श्री प्राप्त होती है, वैसे ही आध्यात्मिक श्री भी। यह बात मैं या गौतम ऋषि ही नहीं कहते, जैन आगमों में यत्र-तत्र सत्य की महिमा बतलाई गई है । प्रश्नव्याकरणसूत्र में सत्य को भगवान् बतलाकर उससे होने वाले भौतिक-आध्यात्मिक सभी लाभ बतलाये गये हैं। ___आचारांगसूत्र में भी स्पष्ट बताया गया है-"सत्य की आज्ञा से उपस्थित मेघावी मृत्यु को पार कर लेता है। अर्थात् मृत्युंजयी बन जाता है।" यजुर्वेद (१६/७७) में सत्यनिष्ठ का परिणाम बताते हुए कहा है
दृष्ट्वा रूपे व्याकरोत् सत्यानृते प्रजापतिः। अश्रद्धामनुतेऽवधाच्छद्धां सत्ये प्रजापतिः।। ऋतेन सत्यमिन्द्रियम्पिान शुक्रमन्चस ।
इन्द्रस्येन्द्रियमिदं योऽमृतं मधु।। अर्थात्-'प्रजापति ने असत्य के प्रति अश्रद्धा और सत्य के प्रति श्रद्धा स्थापित १ सच्चस्स आणाए उवडिओ मेहावी मार लाइ -आचारांग, प्रथम श्रुतस्कन्ध