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________________ सत्यनिष्ठ पाता है श्री को : २ १८५ सलाह दी, क्योंकि वे यह जानते थे कि मेरा उपादान शुद्ध होगा तो कोई भी निमित्त कुछ भी बाल बाँका नहीं कर सकेगा। सत्यविचार का यह एक पहलू है, जो जीवन को समृद्ध बनाता है। सत्यविचार का दूसरा पहलू है-सगाज में प्रचलित कुरूढ़ियों, कुरीतियों, कुप्रथाओं, अन्धविश्वासों एवं मूढ़ताओं के चार में नहीं पड़कर सत्यनिष्ठ सत्यविचार करता है। वह सत्यविचार पर अन्त तक टिका रहता है। लोग उसकी पूरी कसौटी करते हैं, लेकिन वह इस कसौटी पर खरा उतरता है। एक व्यक्ति सत्य बोलता है, लेकिन विकासधातक, अन्धश्रद्धापोषक, हिंसक एवं खर्चीली अहितकर कुरूढ़ियों या कुरीतियों में फंसा है, उसे हम सत्यनिष्ठ नहीं कह सकते। अतः उसके लिए सत्यविचार का होना बहुत आवश्यक है। सत्यविचार से ही उसकी बौद्धिकश्री बढ़ती है, जिससे वह समाज में अशान्तिवर्द्धक, असंतोषजनक नाना समस्याओं को मिनटों में हल कर देता है। यही विचार-समृद्धि उसके जीवन-वैभव को बढ़ाती है। इस प्रकार का . सत्यविचारमय जीवन एवं मंगलमय विभूति बा जाता है। अब आइए सत्यनिष्ठ की श्रीवृद्धि में कारणभूत चौथे स्रोत की ओर। वह है-सत्य-आधार । सत्य-आचार का मतलब है--आचरण में सत्यता। 'करण सच्चे' का रहस्य यही है। वास्तव में जो अपने मन-वचन-काया को एक करके प्रवृत्ति करता है, वही सत्य-आचरण है। सत्य आचरण से व्यक्ति का जीवन पवित्र, निर्भय, शुद्ध एवं मनोबलयुक्त बनता है। ऐसे सत्याचरणी व्यक्ति का जीवन विश्वसनीय एवं एक दिन अपार श्री से युक्त बन जाता है। जीते-जी उसकी यश कीर्ति उसे अमर बना देती है। गुजरात के एक सत्यनिष्ठ व्यक्ति का उदाहरण लीजिए--- धोराजी-निवासी मेमणकुल के खानुमूरम उस समय लगभग ३५ साल के थे, वे बड़े निर्धन और फटेहाल थे, किन्तु थे बड़े ही कुलीन, सत्यपरायण एवं धार्मिक। वे एक बार बाघणिया से बगसरा जा रहे थे। महसा रास्ते में उन्हें एक जगह गिरा हुआ चमड़े का वजनदार बटुआ मिला। हाथ में उठाकर खोला तो मन को सहसा आधात लगा; क्योंकि उस बटुए में कोई साधारण चीज नहीं थी। किन्तु सोने के हार, कण्ठी, बाजूबंद आदि गहने थे, जिनमें रल, माणिकरा, हीरा, पन्ना, पुखराज आदि जड़े हुए थे। एक बार तो इतने बहुमूल्य आभूषण देखवल किसी भी व्यक्ति का मन विचलित हो सकता था, लेकिन सत्य पर दृढ़ नीतिमान वानुमूसा के दिल में इस कीमती माल को हजम करने या अपने कब्जे में करने का जा भी विचार नहीं आया। अन्यथा, ऐसी दरिद्रता में बड़े-बड़े महारथी, नीतिपरायण पुरुष डिग जाया करते हैं। बल्कि उन्होंने तुरन्त प्रभु से प्रार्थना की -"या पाक पावरदिगार खुदा ! मुझे अनीति-असत्य के नापाक विचारों एवं कृत्यों से बचाना। मुझे तो इसमें से एक अंशभर भी लेना सूअर के मांस खाने के समान है।" दूसरे ही क्षण विचार आया-“मालूम होता है, किसी भाग्यशाली के ये गहने हैं
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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