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________________ १८४ आनन्द प्रवचन : भाग ६ उठाइए।" सेठजी के बात जॅच गई। उन्हें नेरिंग की एजेंसी ले ली और हावड़ा में 'सेठिया कलर एण्ड केमिकल वर्क्स' खोला। धर जर्मनी का युद्ध छिड़ गया। रंग के दाम कई गुना बढ़ गए, जिसमें उन्हें लाखों की कमाई हुई। यह था सत्य व्यवहार से श्रीप्राप्ति के रूप में प्रत्यक्ष फल ! सत्यनिष्ठ के लिए श्रीप्राप्ति का तीसरा मुख्य स्रोत है—सत्य-विचार । जो मनुष्य सत्य विचारपूर्वक प्रवृत्ति करता है, वह स्वयं सुख-शान्ति और सन्तोष धन को प्राप्त करता है, और जिसको वह सत्य विचार या सत्परामर्श देता है, वह भी सुखी और विवेकी हो जाता है। सत्य विचार एक प्रकाश है, जिसमें मनुष्य कर्तव्याकर्तव्य, हिताहित, धर्माधर्म एवं हेय-उपादेय का भलीभाँति विवेक कर सकता है। सत्यनिष्ठ व्यक्ति किसी के द्वारा पूछे जाने पर सत्य विचार ही प्रगट करता है। पाण्डवों और कौरवों में युद्ध चल रहा था। दुर्योधन पाण्डवों के द्वारा युद्ध में किये जाने वाले प्रहार सहते-सहते थक गया म। किसी ने उससे कहा कि अगर तुम्हें अजेय बनना हो तो सत्यवादी धर्मराज युधिषित के पास जाओ, वे तुम्हें सच्ची सलाह देंगे, चाहे वे तुम्हारे विरोधी पक्ष के हैं, परन्तु इतने विश्वसनीय हैं कि वे तुम्हें सत्य परामर्श देंगे।" दुर्योधन सीधा युधिष्ठिर के पास पहुँजा और नमस्कार करके पूछा- “भाई साहब ! मैं आपसे एक विषय में सत्परामर्श के लिए आया हूँ। आशा है, आप मुझे सच्ची सलाह देंगे।" युधिष्ठिर ने कहा-“कहो, दुर्योधन ' ज्या पूछना है ?" दुर्योधन बोला- "मैं आपसे यह पूछना चाहता हूँ कि क्या ऐसी कोई उपाय है, जिससे मैं अजेय हो जाऊं। मेरे शरीर पर शास्त्री का प्रहार असर न कर सके।" युधिष्ठिर--"इसका उपाय है और वह उपाय तुम्हारे घर में ही है।" "दुर्योधन-"कौन-सा उपाय है ? जरा बताइए तो।" "युधिष्ठिर -"उपाय यह है कि अगर तुम अपनी माता गांधारी के सामने नंगे बदन होकर बैठ जाओ और वह तुम्हारे शग पर अपनी दृष्टि फिरा दे तो तुम्हारा शरीर वज्रमय हो सकता है। फिर तो तुम अन्य हो जाओगे। कोई भी प्रहार तुम पर असर नहीं कर सकता।" दुर्योधन बोला-“यह उपाय तो मेरे वा में ही है।" युधिष्ठिर -"तो जाओ और इस उपाय को कर देखो।" दुर्योधन खुशी के मारे नाचता हुआ मजा गांधारी के पासपहुंचा। श्रीकृष्ण जी के कहने से उसने अपने गुप्तांग पर कमलफा लगा लिये और बाकी के सब अंग खोलकर माताजी के सामने बैठ गया। आगे की कहानी लम्बी है। उससे यहाँ कोई मतलब नहीं। यहाँ तो सिर्फ यही बताना है कि दुर्योधन जैसे कट्टर शत्रु को भी सत्यवादी युधिष्ठिर ने सच्ची विचारणा व
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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