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सयनिष्ठ पाता है श्री को : २
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क्षेत्र में सत्य व्यवहार करते हैं, वे विश्वसनीय रुषं जनता के आकर्षण केन्द्र बन जाते हैं। वकालत में सत्य व्यवहार करने वाले वकील के कथन पर न्यायाधीश का पूर्ण विश्वास हो जाता है इससे अभियोगों में उनके पक्ष को विजयश्री मिलती है। राजनीतिक क्षेत्र में भी सत्य व्यवहार करके व्यक्ति अपने पक्ष में विश्व का लोकमत कर सकता है। सत्य व्यवहार से वह राष्ट्रों में परस्पर शान्ति स्थापित कर सकता है। और व्यापारी भी अपने सत्य व्यवहार से विश्वसनीय कानकर लाखों कमा लेता है। सत्यनिष्ठ का सत्य व्यवहार अनायास ही, अज्ञातरूप से कोई न कोई ऐसा निमित्त मिला देता है, जिससे उसकी श्रीवृद्धि हो जाती है। एक सत्य घटना मैंने सुनी थी
बीकानेर के 'अगरचन्द जी भैरोंदानजी सैठिया' का नाम दूर-दूर तक प्रसिद्ध है। सेठ अगरचंदजी उन दिनो कलकत्ता में रंग का काम करते थे। जर्मनी की एक कंपनी के मालिक के साथ उनका लेन-देन था। एवत बार भूल से उनके दस हजार रुपये ज्यादा आ गए। साहब के भी ध्यान में यह बाक नहीं आई। दीपावली के दिन आँकड़ा मिलाने लगे, तव सेठ अगरचंदजी के ध्यान में आया कि उक्त साहब के दस हजार रुपये खाते में अधिक जमा है। अतः सेठजी इस हजार रुपयों की थैलियाँ लेकर एक घोडागाड़ी में बैठकर उक्त साहब की कोठी पर पहुँचे। उनसे कहा--"साहब ! हमने दीवाली पर आंकड़ा मिलाया, उसमें आपके दस हजार रुपये अधिक निकलते हैं। अतः आप अपना एकाउंट देखकर ये रुपये ले लीजिए।" साहब ने एकाउंट बुक देखकर कहा-"नहीं, हमारे एकाउंट में दस हजार रुष्ण्ये कम नहीं है।" हुआ ऐसा कि भूल से एकाउंट बुक में एक जगह एक विंदी अधिक लगी हुई थी, वह साहब के ध्यान में नहीं आई थी। सेठजी ने कहा-"जरा एकाउंट क मुझे दें तो मैं भी वह हिसाब जाँच लूं।" साहब ने एकाउंट बुक सेठ अगरचन्दर्जी को दे दी। उन्होंने बारीकी से देखा तो एक जगह भूल से एक बिंदी अधिक लगी हुई दिखाई दी। उन्होंने उसी समय साहब को हिसाव की वह भूल बता दी। साहब बहुत प्रसन्न हुए। कहने लगे-“सेठजी ! हमने हिन्दुस्तान में आकर आप सरीखा ईमानदार एवं सत्यनिष्ठ व्यक्ति नहीं देखा। आपने अपनी सत्यनिष्ठा के साथ भूल से अधिक आए हुए रुपये लेकर कोठी पर आने का कष्ट उठाया। अतः आपको ये रुपये खुनो से देते हैं।" इस पर सत्यनिष्ठ सेठजी ने कहा- "साहब ! हम व्यापारी हैं, साहूका हैं, इस प्रकार से बिना कमाई की एक पाई भी नहीं ले सकते । आप इन थैलियों को संभालिए, मैं जाता हूँ।"
सेठजी जा ही रहे थे कि साहब को एक बात सूझी कि इन्हें जर्मनी के रंग की एजेंसी ही क्यों न दे दी जाए, जिसमें दस हफार से भी ज्यादा कमाई हो जाए। साहब ने तुरंत सेठजी को बुलाया और बिठाकर कहा
“सेठजी ! हम आपको ऐसे रुपये नहीं देते, हमने सोचा है कि जर्मनी से अमुक अमुक रंग के इतने ड्रम आने वाले हैं, वा सारा माल हम आपको कमीशन एजेंट बनाकर दे देते हैं। अभी बाजार पहले से तेज है। इसलिए इस व्यापार से आप लाभ