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१८२ आनन्द प्रवचन भाग ६
लिए जमीन और साधन दिलाने का वचन दिशा, जिससे उन्होंने लूटपाट करना छोड़ दिया !
इस प्रकार सत्यनिष्ठ को सत्यवाणी के द्वारा मनोवाञ्छित कार्यसिद्धि रूपी श्री की प्राप्ति होती है। इसलिए सत्यवाणी श्री प्राप्ति का प्रथम स्रोत है।
सत्यनिष्ठ के लिए श्रीप्राप्ति का दूसरा मुख्य स्रोत है-सत्य व्यवहार। संत्यनिष्ठ के व्यवहार में सरलता होती है। वह अमृत के समान मधुर लगता है। सत्य व्यवहार अपने अन्तःकरण में शान्ति और सन्तोष पैदा करता है, और दूसरों को भी अग्रगामी बनाता है। सच्चाई और सज्जनता का व्यवहार जिस किसी के साथ भी किया जाता है। वह प्रभावित हुए बिना नहीं रहता। सत्य व्यवहार से परस्पर स्थिर घनिष्ठता और मित्रता उत्पन्न होती है। इसीलिए सत्यनिष्ट र पुरुष किसी के भी साथ कपटयुक्त व्यवहार नहीं करता। कोई उसके साथ विद्वेगपूर्ण व्यवहार करे तो भी वह किसी को धोखा नहीं देता । सत्यनिष्ठ के व्यवहार में बनावटीपन, ढोंग, छल, कपट और झूठफरेब के झोंपड़े नहीं होते, जो थोड़ी-सी आंधी चलते ही उखड़कर दूर जा पड़ते हैं, अपितु सत्य व्यवहार के ईट और गारे से बना हुआ जीवन का मकान तेज तूफानों में भी सुदृढ़ रहता है। सत्यनिष्ठ व्यक्ति संसार में निर्भय, निश्चिन्त और स्पष्ट होकर व्यवहार करता है।
इस संघर्षपूर्ण संसार में सत्यव्यवहार से ही विजयश्री प्राप्त होती है, इसका एकमात्र कारण यह है कि सत्यव्यवहार से सहयोग और विश्वास की प्राप्ति हो जाती है। संसार में सभी कर्मों की गति प्रगति विश्वास पर निर्भर है। व्यापारी या उद्योगपति अपने सत्यव्यवहारी मुनीम - गुमाश्तों के विश्वास पर लाखों रुपयों की सम्पत्ति छोड़ देता है । सत्यव्यवहार करने वाले पर कदापि अविश्वास नहीं होता। और विश्वास के कारण ही सत्य व्यवहार वाले के यहाँ लक्ष्मी करसने लगती है।
विक्रम संवत् २००६ की घटना है। बीकानेर के महाराज करणीसिंह जी ने स्थानीय प्रसिद्ध सर्राफ श्री ताराचन्द जी केोचन्दजी को सोने की चार सौ तश्तरियाँ बेचीं। साथ में शर्त थी—सवा आना तोला खाद काटने की। परन्तु महाराजा के कामदार ने भूल से सवामाशा के हिसाब से खाद काटकर बिल बना दिया। वह बिल जब ताराचन्द जी ने देखा तो वोले- 'यह बिल गलत बनाया गया है। हमारे सवा आना तोला खाद काटने के वादे से २४००८) रुपये की भूल है। ये २४ हजार रुपये हमसे और अधिक ले जाइए।' जब यह बा महाराज श्री करणीसिंह जी के कानों में पहुँची तो वे ताराचन्द जी के इस सत्यवहार से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने अपना लाखों रुपयों का और भी सोना उनके हाथ गंधा ।
यह था सत्यव्यवहार का प्रभाव, जिसके कारण उस सत्यार्थी का विश्वास जम जाने से प्रतिष्ठा, यशः श्री और भौतिक श्री भ उसके पास दौड़ी हुई आई।
सत्य एक वशीकरण मंत्र है। जो वतील, राजनीतिज्ञ एवं व्यापारी अपने अपने