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________________ सायनिष्ठ पाता है श्री को : २ १८१ तां चाप्येतां मातरं मंगलानां, धेनुः धीराः सुनृतं वात्रमाहुः । । 'सत्यवाणी को धीर विद्वान् ऐसी गौ कही हैं, जो कामना की पूर्ति करने वाली कामधेनु है, वह अलक्ष्मी दरिद्रता को दूर भगा देती है, कीर्ति रूपी बछिया को पैदा करती है। वह मंगलों की माता है और दुष्कृतों-- पापों को नष्ट कर देती है। ' सचमुच यदि सत्यार्थी साधक सत्यवाणी रूपी कामधेनु को पाले-पोसे और प्रत्येक क्रिया उसी की प्रेरणा से करे तो वह उसकी प्रत्येक शुभेच्छा और सत्यसंकल्प को पूर्ण करती है। उसके मनोवांछित सभी सत्कार्यक्रम पूर्ण होकर रहते हैं। जिसकी वाणी में सचाई होती है, वह वक्ति कदाचित् किसी कारणवश बन्धन में डाल दिया जाए, फिर भी जब उस व्यक्ति को उस सत्ययवादी की सत्यता का पता लगता है तो उसे छोड़ दिया जाता है। भीमाशाह नाम के एक वणिक बहुत ही सत्यवादी हो गये हैं। उनकी सत्यवादिता से प्रभावित होने के कारण उनकी दूकान पर ग्राहकों को भीड़ लगी रहती थी। इस प्रकार सत्यवाणी के कारण उन्होंने प्रतिद्धि भी प्राप्त की और लक्ष्मी भी एक बार भीमाशाह की सत्यवादिया की कसौटी हुई। वे अकेले एक जंगल के मार्ग से होकर किसी कार्यवश जा रहे थे। रास्ते में भीलों ने उन्हें देखा और उनकी वेशभूषा से जान लिया कि वह व्यापारी बनिया है। अतः उन्हें लूटने के इरादे से घेर लिया और कहा— 'जो कुछ भी तुम्हारे पास हो रख दो। अन्यथा जान से मार दिये जाओगे।' भीमाशाह सत्यवादी थे। प्राणों का संकट आने पर भी वह झूठ नहीं बोलते थे। उन्होंने कहा--' इस समय तो मेरे पास सिर्फ कुछ रुपएं हैं। कहो तो दे सकता हूँ।" भीलों ने कहा- 'थोड़े से रुपयों से क्या होगा ? यदि तुम्हें बन्धनमुक्त होना है तो अपने पुत्र की चिट्ठी लिखकर दो-पाँच सौ स्वर्णमुद्राएँ हमारे आदमियों को दे देने के लिए। जब हमारे आदमी 500 स्वर्ण मोहरें लेकर आ जायेंगे, तभी तुम्हें हम छोड़ेंगे।' भीमाशाह ने अपने पुत्र के नाम एक चिट्ठी पाँच सौ स्वर्णमुद्राएँ भीलों को देने के लिए लिखकर दे दी। चार भील उस चिठी को लेकर भीमाशाह के गाँव में गये, उनके लड़के को वह चिट्ठी बताई। लड़के ने सोचा- 'पिताजी विपत्ति में फँस गये लगते हैं।' अतः ५०० असली सोने की महरें देने के बजाय, उसने एक थैली में नकली खोली ५०० मोहरें भरकर उन भीलों को वह थैली पकड़ा दी। भील विश्वास पर ले आये। जब भीमाशाह को वह थैली खोलकर दिखाई तो खोटी मोहरें देखकर उन्होंने भीलों से कहा——‘भाइयो ! ये खोटी गेहरें मेरे पुत्र ने तुम्हें दे दी हैं, लो, मैं तुम्हें दूसरी चिट्ठी अकली मोहरें देने के लिए लिख देता हूँ। अन्यथा, तुम लोगों का सदा के लिए विश्वास उठ जाएगा।' भीलों पर भीमाशाह की इस सत्यवार्षपे का अद्भुत प्रभाव पड़ा। और उन्होंने यह कहकर उन्हें बन्धनमुक्त कर दिया कि ऐसे महान् सत्यवादी को हम हैरान नहीं कर सकते।' भीलों ने उन्हें वह थैली भी वापस कर दी। भीमाशाह ने भीलो को खेती के
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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