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________________ १८० आनन्द प्रवचन : भाग ६ अवस्थित हैं। यह सत्य वचन का ही प्रभाव है कि सत्यनिष्ठ के द्वारा जपे हुए मंत्रादि शीघ्र सिद्ध हो जाते हैं, और अचूक रूप से काम करते हैं। इसी कारण कहा गया है प्रियं सत्यं वाक्यं हरति शयं कस्य न सखे! गिरं सत्यां लोकः प्रतिगादमिमामर्थयति च। सुराः सत्या वाक्याद् ददति मुदिता कामिकफलं, अतः सत्याद् वाक्याद् व्रतमभिमतं नास्ति भुवने।। 'सत्यनिष्ठ व्यक्ति का प्रिय सत्य वाक्य तिसके हृदय को प्रभावित नहीं करता ? वे सबके हृदय को हरण कर लेते हैं। जनता सत्यनिष्ठ की उस सत्यवाणी का एक-एक पद सुनना चाहती है। देवता सत्यवचन से प्रसन्न होकर सत्यनिष्ठ को यथेष्ट फल प्रदान कर देते हैं। अतः मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि मत्य वाक्य (वाणी) से बढ़कर अभीष्ट या रुचिकर संसार में दूसरा कोई व्रत नहीं है।' पाश्चात्य दार्शनिक प्लेटो भी सत्य वचन के विषय में यही कहता है "There is nothing so delightful as the hearing of the speakingofthe truth." 'सत्य वचन सुनने या बोलने से बढ़कर आनन्दप्रद संसार में और कोई चीज नहीं 'सत्य सुनने में सत्यनिष्ठ को जितना आनन्द आता है, उतना ही आनन्द सत्य कहने में आता है।' सुत्तनिपात के अनुसार 'सत्य ही अमृतवजन होता है। इसलिए उसे कहने-सुनने में आनन्द आना स्वाभाविक है। शास्त्रों में सत्यनिष्ठ की वाणी को कामधनु की उपमा दी गई है। कामधेनु का अर्थ होता है---- इच्छित वस्तु प्राप्त करा देने वाली वस्तु । सत्यनिष्ठ साधक जब कामधेनु के समान सत्यवाणी का ही प्रयोग करता है, तब उसी सुन्दर मनचाहा दूधरूपी फल मिलता है। उत्तर रामचरित (५/३०) में यही बात कही है कामं दुग्धे विप्रवर्वत्यलक्ष्मी। कीर्ति सूते दुष्कृत का हिनस्ति ।। १ "जे वि य लोगम्मि अपरिसेसा मंता, जोगा, जवा य, विज्जा य, जंझका य, अत्याणि वा सत्याणि य, सिक्खाओ य, आगमा य, सब्बाणि वि ताई सच्चे पइट्ठिया।" -प्रश्नव्याकरण, संवरद्वार २ २ सच्चं वे अमत्ता वाचा। --सुत्तनिपात ३/२६/४
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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