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________________ १७६ आनन्द प्रवचन : भाग ६ झुकना पड़ता है। सत्यनिष्ठ व्यक्ति के जीवन में इस प्रकार का सात्त्विक बल एवं प्रकाश उत्पन्न हो जाता है, जिनके कारण संवट और विपत्ति के समय वह निर्भय होकर विचरण करता है। न तो उसे कहीं शंका होती है और न भय । सत्याश्रयी व्यक्ति का जीवन सुख और शान्ति से परिपूर्ण रहता है, उसकी प्रसन्नता में विघ्न डालने वाले तत्त्व उसके पास कदाचित् ही आ पाते हैं। एक बार दिल्ली का बादशाह प्रातःकाल योग्य व्यक्तियों को पदवियाँ और इनाम बाँटने के लिए सिंहासन पर बैठा था। जल समारोह समाप्त होने आया तो उन्होंने देखा कि जिन व्यक्तियों को उन्होंने बुलाया है, उनमें सैयद अहमद नामक सत्यवादी युवक नहीं आया है। बादशाह पालकी में बैठकर राजमहल में जाने के लिए ज्यों ही सिंहासन से उठे, त्यों ही एक युवक भागा-भागा ।आया। उतावली से ज्यों ही युवक ने प्रवेश किया, बादशाह ने उससे पूछा-'इतनी हर क्यों हुई ?' युवक ने सच-सच कह दिया- 'बादशाह सलामत ! मैं आज बहुत देर तक सोया रहा।' सैयद की इस सच्ची बात पर दरबारी लोग आश्चर्य से उसकी ओर त्राकने लगे। आपस में कानाफूसी करने लगे कि 'जिस ढिठाई से यह बादशाह से यात्रा कर रहा है, कितनी आफत उठानी पड़ेगी इसे। यह कोई उचित बहाना भी तो नहीं है।' परन्तु हुआ इसके विपरीत। बादशाह ने एक क्षण कुछ सोचा, फिर युवक की सत्यवादिता की प्रशंसा की, फिर उसके सत्य कहने के साहस पर उन्होंने मोतियों की एक माला और आभूषण प्रदान किये। सैयद अहमत सत्य से प्रेम करता था। वाहे बादशाह हो या साधारण किसान, वह सबसे सत्य बात कहता था। इसी सत्यवाविना का प्रतिफल उसे भीतिक श्री के रूप में मिला। सत्यार्थी व्यक्तियों में महानता और देवश्च का अवतरण सत्यनिष्ठा के आधार पर होता है। कुछ समय तक उन्हें सोने की ताह परख की कसौटी पर कसा जाता है, पर उस अग्नि-परीक्षा के बाद उनकी भौतिवः श्री (आभा) और प्रामाणिकता चमक उठती है। जो धैर्यपूर्वक परख की मंजिल पार कर लेते हैं, उन्हें सत्य की महान शक्ति को मानना पड़ता है। सत्यवादी अपने आप में एक देवता है, फिर भी सत्यवादी के चरणों में देव, दानव, यक्ष, राक्षस, व्यन्तर ओदे सभी नमन करते हैं, वे धर्म सहायता भी करते हैं। साथ ही सत्यवादी का प्रभाव झाना होता है कि भूत, प्रेत, सिंह, व्याघ्र, सर्प आदि उनका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते ।। यही बात योगशास्त्र (प्रकाश २, श्लो० ६४) में बताई है अलीकं ये न भाषन्ते, मत्यव्रतमहाधनाः। नापराधुमलं तेम्यो झाप्रेतोरगादयः।। "जो सत्यव्रतरूपी महाधन से युक्त हैं, कभी असत्य भाषण नहीं करते। अतः भूत, प्रेत, सांप, सिंह, व्याघ्र आदि उनको कुष्ठ भी हानि नहीं पहुंचा सकते।" वास्तव में सत्यवादी को महान भौतिक शक्तियाँ प्राप्त हो जाती हैं, वह उनका
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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