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सत्यनिष्ट पाता है श्री को २ १७५
आज महणसिंह सेठ को सजा मिलेगी। कुछ लोग आपस में कानाफूसी करने लगे- 'आखिर तो व्यापारी बच्चा है। दो-चार लाख कम ही बताएगा।'
राजा ने पूछा- 'क्यों महणसिंह ! हिसाब कर लाए ?'
महणसिंह - 'जी हजूर । '
राजा - 'कुल कितनी रकम हुई ?"
महणसिंह - 'हजूर ! कुल ररकम 84 लाख है।'
यह सुनकर सब आश्चर्य व्यक्त करने नगे 'हें ! चौरासी लाख ! तब तो आ बनी ! अब राजाजी इसे दण्ड दिये बिना न छोड़ेंगे।' परन्तु सबके आश्चर्य के बीच राजाजी ने अपने सेवक को आदेश दिया--' खजांची से कहो सोलह लाख रुपये राजकोष से निकालकर लाये।' सभी विस्मित से रह गये कि ये सोलह लाख रुपये पता नहीं, क्यों मंगवा रहे हैं राजाजी ? यह रहस किसी की समझ में न आया। इतने में खजांची १६ लाख की थैली लेकर हाजिर हुआ। राजाजी ने उससे कहा 'खजांची ! यह सोलह लाख की थैली सेठ महणसिंह को दो। आज से मेरे प्रजाजनों में सत्यनिष्ठ सेठ महणसिंह कोटिध्वज कहलाएगा। सत्य के पुजारी सेठ महणसिंह को उसकी सचाई के लिए मेरी ओर से यह पुरस्कार है। 'धनः हो, महणसिंह तुम्हारी सत्यता को !' और तभी सारा उपस्थित जनसमुदाय एक स्वर से बोल उठा- 'धन्य हो, सत्यता का सम्मान करने वाले को !'
इसके पश्चात् सत्यनिष्ठ सेठ महणसिंह को ससम्मान विदा किया। सारी सभा विसर्जित हुई।
बन्धुओ ! राजा फिरोजशाह ने सेठ गहणसिंह को पुरस्कृत और सम्मानित किया था, वह केवल धन के कारण नहीं, परन्तु उनकी सत्यता के कारण। श्री गौतम महर्षि ने सच ही कहा है- 'सत्यनिष्ठ 'श्री' पाता है।' प्रतिष्ठा, पुरस्कार, सम्मान, यशःकीर्ति, पद आदि सब भौतिक श्री है, जो सत्य के पुजारी को प्राप्त होती है।
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी का कथन है- 'सत्य एक विशाल वृक्ष है। उसकी ज्यों-ज्यों सेवा की जाती है, त्यों-त्यों उसमें अनेक फल आते हुए नजर आते हैं। उनका कभी अन्त नहीं आता । '
सत्य के पुजारी का नैतिक बल इतना बढ़ जाता है कि उसकी तुलना दस हजार हाथियों के बल के बराबर की जाती है। अशो से बड़ी बौद्धिक-शक्तियाँ, मशीनी ताकतें और मानवीय संगठन भी सत्य के समक्ष परास्त होते देखे जाते हैं। सत्यवादी हरिश्चन्द्र की सत्यनिष्ठा के सामने विश्वामित्र को घुटा टेकने पड़े।
महात्मा गांधी की सत्यग्रहिता के समक्ष ब्रिटिश साम्राज्य जैसी शक्तिशाली सत्ता को भी हथियार डाल देने पड़े। मनुष्य की शक्ति, उसका व्यक्तित्व और उसकी महानता सभी उसकी सत्यता में अन्तर्निहित है। उसकी सत्यता के कारण उसकी नैतिक शक्ति, क्षमता और तेजस्विता बढ़ जाती हैं, जिसके सामने बड़े से बड़े सत्ताधारी को