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________________ १७४ आनन्द प्रवचन : भाग ६ इसके कारण जीवन की गतिविधियाँ ठीक रूप में होती हैं। सत्य के कारण सत्यनिष्ठ व्यक्ति को भौतिक लक्ष्मी और प्रतिष्ठा कैसे मिलती है ? इसके लिए एक ऐतिहासिक उदाहरण लीजिए __ महणसिंह देवगिरी दौलताबाद के सेठ जगासिंह जी का पुत्र था। वह सत्यनिष्ठ था। जीवन में कभी असत्य बोलने, आचरण करने और असत्य विचार उसने नहीं किया था। उसके प्रबल पुण्य से उसके पास सम्पपत्ते भी पर्याप्त थी। इसका कारण था सत्यप्रिय महणसिंह ने दिल्ली जाकर अपना कारोकार बढ़ाया। सत्य के प्रभाव से उसका व्यवसाय भी खूब चला, कीर्ति भी खूब फैली। समाज में उसकी प्रतिष्ठा भी काफी थी। थोड़े ही समय में सेठ महणसिंह की गणना लखपतियों में होने लगी। दिल्ली के सिंहासन पर उस समय फिरोजशाह का शासन था। कुछ ईर्ष्यालु चुगलखोरों ने राजा के कान भरे----'हजूर ! माणसिंह को सभी सत्यावतार कहते हैं, परन्तु हमें तो ऐसा कुछ मालूम नहीं होता। इसमें यहाँ आकर लाखों रुपये कमाये हैं। परन्तु राजकोष में शायद ही कुछ धनराशि देता फोगा। देता होगा तो भी मामूली रकम देता होगा। आपको इधर भी ध्यान देना चाहिए। यह बनिया नाहक अभिमान में फटा पड़ता है।' राजा ने पूछा---'महणसिंह के पास कितनी पूँजी होगी ?" चुगलखोर ने कहा-'हजूर ! दस लाख से कम नहीं होगी।' यह सुनकर राजा की आँखें कठोर हो गई। उन्होंने फौरन अपने विश्वस्त सेवक को आदेश दिया-'जाओ सेठ महणसिंह को यहाँ बुलाकर ले आओ। कहना-राजाजी ने आपको याद फरमाया है।' सेवक से समाचार मिलते ही महणसिह फौरन राजदरबार में पहुंचे और विनयपूर्वक प्रणाम करके राजा के सामने छंहे हो गये। राजा ने पूछा---'कहो, महणसिंह ! आजकल व्यापार कैसा चलता है ?" महणसिंह ने कहा ---"हजूर ! एकदम अच्छा चल रहा है व्यापार। जहाँ भी हाथ डालता हूँ, वहीं पी बारा पच्चीस हो जाता है। आपकी दया से खूब कमाया है।" राजा बोले-'कितना कमाया है ? दस लाख या पन्द्रह लाख ?' महणसिंह---'राजन ! अनुमान से तो कैरी कह सकता हूँ ? आप कहें तो कल मैं पूरा हिसाब देखकर आपको सही-सही बता दूंगा।' राजा-'अच्छा, ऐसा ही करो। परन्तु इसमें जरा भी झूट हुआ तो तुमने असलियत छिपाई तो उचित नहीं रहेगा।' महणसिंह–'हजूर ! जन्म धारण करके आज तक तो मैंने झूठ नहीं बोला। अब असत्य नहीं बोलूंगा ?' दूसरे दिन राजदरबार खचाखच भरा । कुतूहलवश सैंकड़ों दर्शकगण भी महणसिंह की सत्यप्रियता का नाटक देखने आगे हुए थे। सबको ऐसा लग रहा था कि
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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