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आनन्द प्रवचन : भाग ६
एक भी व्यवहार चल नहीं सकता। सत्य के पालन से ही जगत् सुखी, स्वस्थ और व्यवस्थित रह सकता है। इसलिए वह सत्यबल का आश्रय लेकर जीवनयापन करता
संसार में उन्हीं का सम्मान होता है, जिना पास सत्य बल है। उन्हीं पर जनता की श्रद्धा होती है। जिनका आचरण, व्यवहार और संभाषण असत्य के सहारे टिका है, ऐसे लोग सभी की आँखों में गिर जाते हैं। हजारों वर्ष होने परभी आज लोग सत्य हरिश्चन्द्र को श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हैं, इसलिए कि सत्य की बलिवेदी पर उन्होंने अपना सर्वस्व चढ़ा दिया। उनका प्रण था
चन्द टरै सूरज टर, टरै जगत व्यवहार।
पै दृढ़ श्री हरिचंद को, टरेन सत्य विचार । सत्यनिष्ठा से लाभ
सत्य मानव जीवन को महानता और उत्कृष्टता के शिखर पर पहुंचाने वाला प्रशस्त और निरापद राजमार्ग है। इस पर निष्ठापूर्वक चलने वाले पथिक को किसी भी देश, काल एवं परिस्थिति में भय या संकट नहीं रहता, सत्यनिष्ठा व्यक्ति को पापकर्म से विरत रखती है। वह ऐसा कोई भी अकरणीय। कार्य नहीं करता, जिससे उसे किसी कार्य का भय हो, दण्ड या बदनामी का डर हो। वह अपने सत्य व्यवहार और सत्य-आचरण से जनता का विश्वास भाजन बन जाता है। सत्यार्थी पर विपत्ति आ भी जाए तो वह उससे डरता नहीं, विपत्ति को सम्पति में बदल देने की क्षमता उसमें होती है, जनता भी उसकी सत्यनिष्ठा से संतुष्ट होकर निपत्ति या संकट के समय सहयोग देती है और सत्याधिष्ठित देवता भी उसकी तमाम समस्याओं को सुलझा देते हैं। इसीलिए एक जैनाचार्य ने सत्य से उपलब्ध होने वाली विविध शक्तियों का परिचय देते हुए कहा
विश्वासायतनं विपत्तिदलनंहीवैः कृताराधनम्, मुक्तेः पथ्यदनं जलाग्निशमनं पाम्रोरगस्तम्भनम् ।
श्रेयः संवननं समृद्धिजनन सौजन्य-संजीवनम्,
कीर्तेः केलिवनं प्रभावभवनं मत्यं वचः पावनम् । 'सत्य वाणी को पवित्र करता है, विश्वारा का स्थान है, विपत्तियों को नष्ट करने वाला है, देवता सत्यनिष्ठ की सेवा करते हैं, यह मुक्ति मार्ग का पाथेय है, जल और अग्नि को शान्त कर देता है, व्याघ्र और सर्प बती पास आने से रोक देता है, श्रेय का दाता है, समृद्धि का जनक है, सौजन्य की संजीरानी बूटी है, कीर्ति का क्रीडावन है और प्रभाव का निवास भवन है।"
___ बन्धुओ ! इससे आप अनुमान लगा सकते हैं कि सत्यनिष्ठ के पास कितनी महाशक्तियां हैं। जिसके पास इतनी महाशक्ति रूपी श्रीपुंज है, क्या उस पर कोई