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________________ सत्यनिष्ठ पाता है श्री को:१ १७१ विघ्न-बाधा, विपत्ति, भय, कष्ट या अशान्ति आ सकती है ? आएगी तो भी फौरन ही चली जाएगी। स्थूलदृष्टि वाले लोग ही सत्यनिष्ठ पर पड़ने वाली बाह्य विपत्तियों की कल्पना करते हैं, परन्तु वह उन्हें ऐसी कडादायिनी महसूस नहीं करता। वह तो निश्चिन्त और निर्भय होकर सत्यपथ पर चलता है। सत्यनिष्ठ के पास सब प्रकार की श्री कैसे कैसे और किस-रूप में आती है ? इस पर मैं अगले प्रवचन में अपना चिन्तन प्रस्तुा करूँगा। आप सत्यनिष्टा से प्राप्त होने वाली उपलब्धियों पर गहराई से चिन्तन करें और अपना जीवन सत्यनिष्ठ बनाने का प्रयल करें।
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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