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आनन्द प्रवचन : भाग ६
शिष्यगण पहले दिन गुरु की आज्ञा पालन करने के कारण बेहद थके हुए थे, नींद भी पूरी न ले सके थे। जब उन्होंने किसानों को दिये हुए गुरु के थोथे आश्वासन के विषय में सुना तो आने वाली इस विपति से बचने के लिए आपस में सलाह की—“कि हमें रात भर परेशान होना पड़ा और आज भी गुरुजी परेशान करेंगे। इससे बेहतर है कि हम सब मिलकर सदा के लिए पतंग काट दें। अन्यथा, यह चक्कर रोज-रोज चलता रहेगा।" इस प्रकार एक मत होकर वे सब गुरुजी के पास आए और बोले- "हमें निकट के गाँव में भ्रमण के लिए जाने की आज्ञा दें।" परन्तु गुरुजी तैयार न हुए। उन्होंने शिष्यों को रात्रि के कार्यक्रम की सूचना दी। शिष्यों ने कहा- "गुरुजी। हम नहीं जानते। जो कहोमा, सो करेगा।" यों कहकर सभी शिष्य वहाँ से चले गए।
सुबह किसानों ने जब खेत को सूखा। पाया तो वे इस असत्यवादी गुरु की भर्त्सना करने लगे। इस प्रकार आम प्रशंसालेप्सु गुरु को असत्यवादी सिद्ध होने के कारण नीचा देखना पड़ा।
वास्तव में, जो इस प्रकार झूठे आश्वासन देकर अपने आपको सत्यवादी या वचनसिद्ध प्रमाणित करना चाहता है, उसकी कलई खुले बिना नहीं रहती। शेखसादी ने लिखा है
__"झूठ बोलना वक्र तलवार से कटे हुए घाव के समान है। यद्यपि वह घाव भर जाता है, किन्तु उसका दाग रह जाताहै।"
सत्यनिष्ठ साधक आत्मप्रशंसा का लोभी बनकर असत्य नहीं बोलता। वह अपनी योग्यता जैसी और जितनी है, उतनी ही कहेगा।
प्रसिद्ध निबन्धकार बेकन (Bacon) के मतानुसार सत्यनिष्ठ में सत्य की त्रिपुटी अवश्य होगी,उसके बिना वह एक कदम भी न चलेगा
"There are three parts in truth; first, the inquiry, which is the wooing of it, secondly, the knowledge of it, which is the presence of it, and thirdly, the belief, which is the enjoyment of it."
"सत्य में तीन भाग महत्त्वपूर्ण हैं--पहला है परिपृच्छा या जिज्ञासा जो इसके सम्बन्ध में जानकारी की याचना करना है। दूसरा है इसका ज्ञान, जोकि सत्य का सानिध्य है, और तीसरा है--विश्वास, जो कि सत्यप्राप्ति का आनन्द है।"
असत्यवादी में ये सत्य के तीनों भाग होने कठिन हैं, उसमें सत्य की जिज्ञासा और सत्य के प्रति विश्वास होना कठिन है।
ये ही कुछ मुद्दे हैं, जिससे सत्यनिष्ठ असत्यवादी से पृथक करके पहचाना जा सकता है।