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________________ सायनिष्ठ पाता है श्री को१ १६५ और विकारी एवं कृत्रिम सत्य को असत्य। मयोंकि उसके असत्य की परिभाषा महाभारत के अनुसार यही होती है "अविकारितमं सत्यं सर्वगोषु भारत !" 'हे अर्जुन ! सभी वर्गों में अत्यन्त अविकाओं को सत्य कहा गया है।' इसी प्रकार सत्यनिष्ठ व्यक्ति जब किसी मत्य को यथार्थतया समझकर पकड़ता है, तब वह परवाह नहीं करता है, अहा ! मेरे पुराने अन्धविश्वासों और अन्ध परम्पराओं की जड़ें उखड़ रही हैं। वह पाश्चात्य विचारक स्पापफोर्ड ए० ब्रूक (StopfortA.Borrke) के इन विचारों से पूर्णत्या सहमत हो जाता है "If a thousand old beliefs were rained in our march to truth we must still march on." "अगर सत्य की ओर गमन करने में हजारों पुराने अन्धविश्वास नष्ट हो जाते हैं तो हमें उनकी परवाह न करके सत्य की ओर सतत चलते रहना चाहिए।" सत्याराधक के साथ सत्य की ओर गमन करने में यदि कोई साथी-सहयोगी नहीं बनता है तो वह उनकी प्रतीक्षा न करके अकेले ही सत्यपथ पर आगे से आगे बढ़ता रहता है। कई आत्म-प्रशंसा के भूखे लोग, जिनमें कुछ साधु भी होते हैं, आत्म-प्रशंसा के अवसर पर असत्य को सौ पदों के पीछे छिपाने में नहीं चूकते। वे बाहर से पूरे सत्यवादी बने रहते हैं, पर अंदर में असत्यवादी मिते हैं। एक गांव में एक आत्म-प्रशंसक गुरु रहा थे। एक दिन एक किसान ने उनकी प्रशंसा व चामत्कारिक शक्ति से प्रभावित होकर उनसे एक प्रश्न का उत्तर देने की प्रार्थना की-"महाराज! मेरा बोया हुआ अनाज खेत में सूख रहा है, बरसात होगी या नहीं?" किसान के द्वारा अपनी प्रसंसा सुनकर उसके दिल में श्रद्धा जमाने के लिए अहंकारी गुरु बोले- “अच्छा, आज रात को तेरे खेत में वर्षा होगी, दूसरों के खेतों के लिए कुछ नहीं कहता।" किसान यह सुनकर प्रसन्नता से घर लौटा। रात को जब चारों ओर सन्नाटा छा गया, तब गुरुजी अपकी शिष्य भण्डली को साथ लेकर उस किसान के खेत पर पहुँचे और रात भर निकठार्ती कुएं से पानी निकालकर खेत को सींचा। ब्राह्म-मुहुर्त होते-होते वे अपने आश्रम र वापिस लौट आए। प्रातःकाल होते ही किसान गुरु के वधन का प्रभाव देखने के लिए अपने खेत पर पहुँचा। खेत को गीला देख किसान ने सोचा-गुरुजी की बात तो सोलहों आने सत्य सिद्ध हुई। गुरु की इस वचनशक्तिकी प्रसंसा उसने सभी पड़ौसी किसानों से कर दी। फिर क्या था, पड़ौसी किसान भी गुरु के पास पहुंचे और उनकी वचन-सिद्धि प्राप्त होने की प्रशंसा करते हुए अपने-अपने खेतों में वर्षा के लिए पूछताछ करने लगे। गुरुजी ने उन्हें भी वैसा ही उत्तर देकर विदा किया।
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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