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सायनिष्ठ पाता है श्री को : १ १५६
एक मौलवी ने कुरानेशरीफ में आए हुए पाठ –'नमाज नहीं पढ़ना चाहिए, जब नापाक हों' में से जब नापाक हों, इन शब्दों को अंगुली से दबाकर गांव में यह प्रचार कर दिया कि 'नमाज नहीं पढ़ना चाहिए, ' ऐसा कुरान में लिखा है। दूसरे नये मौलवी आए और उन्होंने यह माजरा देखा तो दंग रह गए। लोगों में उलटा प्रचार सुनकर नये मौलवीजी ने पुराने मौलवी जी से ऐसा परम्परा विरुद्ध विधान करने का कारण पूछा तो उन्होंने 'जब नापाक हों' पर अंगुली दबाकर कप्मा दिया--" देख लो कुरानेशरीफ में लिखा है या नहीं। ” नये मौलवी उसकी चालकी समझ गए और अंगुली हटवाकर पढ़ने को कहा। इस पर पुराने मौलवी की कलई खुल गई। वे बगलें झाँकने लगे।
हाँ तो, मैं कह रहा था सत्यनिष्ठ व्यक्ति की पहचान यह है कि वह शब्दों की अपेक्षा आशय को पकड़ेगा। महात्मा गांधी जब विदेश गए थे, तब तीन प्रतिज्ञाएँ बेचरजी स्वामी से लेकर गए थे। उनमें से एक थी— 'मांसाहार न करना।' विदेश में गांधीजी के मित्रों ने उनसे कहा- 'तुमने तो मांसहार की प्रतिज्ञा ली है, अण्डे खाने में क्या हर्ज है ?" इस पर गांधीजी ने कहा- "मेरी माता अण्डों एवं मछलियों के खाने को भी मांसाहार में मानती हैं, मैंने भी उसी आशय से प्रतिज्ञा ली थी। अतः अण्डों को मैं मांसाहार में समझकर सेवन नही कर सकता। "
सत्यनिष्ठ साधक सत्य को बोलने तक ही सीमित नहीं समझता। जो सिर्फ सत्य बोलने को ही सत्य मानता है, समय आने पर सत्य सिद्धान्त का आग्रह नही रखता, सिद्धान्त के अनुसार अपना व्यवहार जरा भी नहीं बनाता। जब उसके साथ रहने वाले असत्य का आचरण करते हों तो वह यों कहकर झटक जाता है कि मैं स्वयं सत्य बोल सकता हूँ, सत्य सिद्धान्त का पालन कर सकता हूँ, मेरे साथ रहने वालों पर कैसे लाद सकता हूं, ऐसे अर्धसत्य को सत्यनिष्ठ नही स्वीकार करता ।
साथ ही सत्यनिष्ठ व्यक्तिसत्य की खोज, सत्य का अन्वेषण सतत् चालू रखेगा।
सत्य का अन्वेषक परम्पराओं, रीतिरिवाजों, प्रथाओं एवं सामाजिक रूढ़ियों में आंखें मूँदकर नहीं चलेगा। अगर कोई परम्परा या रीतिरिवाज अथवा प्रथा आज गलत है, उसके पालन से समाज में विषमता पैदा होत्रो है, अधर्म फैलता है, हिंसा होती है, अत्यन्त खर्चीली होने से घातक है, या युग बाह्य है, विकास में बाधक है, आत्मिक परतंत्रता बढ़ाती है तो सत्यनिष्ठा साधक उन परम्पराओं, प्रथाओं या रीति-रिवाजों को असत्य समझकर मानने से इन्कार कर देगा, वह स्वयं ऐसी कुरूढ़ियों का पालन नहीं करेगा। वह ऐसी घातक कुरूढ़ियों को वैचारिक असत्य मानेगा। क्योंकि सत्य वही है, जिससे प्राणिमात्र का हित हो।' महाभारत में बताया है
'यद्भूतहितमत्यन्तं एतत्प्रत्यं मतं मम । '
जो एकान्त रूप से प्राणी मात्र के लिए हितकर है, वही मेरे मत में सत्य है।
१. सत्य की व्युत्पत्ति है - 'सद्भयो हितम सत्यम्'
-उत्तराध्ययन पाईबटीका