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________________ १५८ आनन्द प्रवचन : भाग ६ चूमा। इस पर अबूबकर ने कहा-“भाइयो! इस युवक ने जब भरी सभा में मुझ पर विश्वास रखा, तब इसे निराश करना मेरे लिए उसनुचित था। वह अपना वायदा पूरा करेगा, इसका मुझे पूरा भरोसा था।" इस घटना का फरियादियों पर इतना प्रभाव पड़ा कि उन्होंने युवक पर दया दिखाते हुए कहा- "उमर साहब ! हम इसकी भत्या माफ करते हैं। खुदा जाने, ऐसे सत्यवादी युवक से यह गुनाह कैसे हो गया ?" सबका समर्थन मिला। हजरत उमर ने उस गुनाहगार युवक को उसकी सत्यवादिता से प्रभावित होकर दण्डमुक्त कर दिया। सचमुच, सत्यवादी अपने सत्य-आचरण से पहचाना जाता है। पाश्चात्य विचारक राबर्टसन (Robertson) ने ठीक ही कहा है "Truth lies in character, for truth is a thing not of words, but of life and being." "सत्य आचरण में निहित होता है, क्योंकि सत्य ऐसी चीज है, जो शब्दों की नहीं, किन्तु जीवन जीने की और अस्तित्व की बस्तु है।" जो लोग केवल अपनी प्रशंसा, प्रतिष्ठा या सम्मान के लिए सत्य बोलते हैं, उनका सत्य हृदय की गहराई से तथा मन-वचन-काया की एकता से नहीं होता और एक न एक दिन उस अवसरवादी सत्य की कलई खुल ही जाती है। स्थानांग सूत्र (स्था०४) में श्रमण भगवान महावीर ने मानव में निहित सत्य को पहचानने के लिए चार बातें बताई हैं "चउबिहे सच्चे पण्णते तं जहा"काउज्जुपया, भासुज्जुपया, भावुज्जरमा, अविसंवायणाजोगे।" सत्य चार प्रकार से जीवन में प्रतिष्ठित होता है—काया की सरलता से, भाषा की सरलता से, भावों की सरलता से और आपसंवादिता (परस्पर विरुद्ध वचन या विसंगति न होने) से। ___ सत्यनिष्ठ व्यक्ति शरीर से गलत चेष्टा न करेगा। वह आँखों के इशारे से, हाथ-पैर और मुँह की चेष्टा से तथा खासकर अथवा किसी चीज को फेंककर कोई असत्य कार्य करने की चेष्टा न करेगा, न ही प्रेरणा देगा। वह मन में दूसरे के प्रति गलत विचार या दुष्टभाव नहीं रखेगा, न बाहर वाणी एवं व्यवहार से अच्छाई प्रगट करके पीछे से गलत काम करेगा। उसके जो गान में होगा, यही वह वचन से कहेगा और वही चवहार या कार्य काया से करेगा। सत्यनिष्ठ व्यक्ति सत्य का सम्बन्ध केवल शब्दों से नहीं मानता अपितु आन्तरिक भावना से मानता है। कई बार लोग अपनी प्रत्यवादिता बताने के लिए शब्दों का आश्रय लेते हैं। फिर उन शब्दों का अर्थ खींकान करके या तोड़-मरोड़कर दूसरा ही लगाते हैं। बोलते समय उनका कुछ और भाव रहता है, परन्तु उस भावपर अन्ततः टिका नहीं जाता या टिकना नहीं चाहते, तब वे शब्दों से चिपककर अपने आशय को बदल देते हैं।
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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