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________________ संभिन्नवित होता श्री से वंचित : २ १५३ शूद्रकुमार एम०आर० जयकर महाराष्ट्र वत एक होनहार युवक था। उस समय अठारहवीं सदी का अन्तिम चरण चल रहा था || शूद्रजातीय व्यक्ति के प्रति ब्राह्मणों में छुआछूत और घृणा का भाव बहुत जोर-शोर में चल रहा था। जब जयकर ने एक दिन एक ब्राह्मण अध्यापक से संस्कृत पढ़ाने का अनुरोध किया तो वे आपे से बाहर हो गये। उस समय भारत में ब्रिटिश सरकार का शासन था, इसलिए वे अपने क्रोध को उग्र रूप तो न दे सके, तथापि अध्यापक ने जम्कर को एकलव्य की संज्ञा देकर व्यंग बाणों से घायल करने में कोई कसर न रखी। पाठशाला में टंगे एक वाक्य- स्त्रीशूद्री नाधीयेताम्' की ओर संकेत करते हुए वे साक्रोश बोले-"मूढ़ ! पढ़ इसे और समझ कि अनधिकारी होकर भी तू देववाणी संस्कृत के ज्ञान की आकांक्षा करता है।" जयकर ने शान्ति से उत्तर दिया-"वह वाक्य को संस्कृत में है। अतः पहले मुझे आप उसका ज्ञान कराइए, तभी तो मैं उसे पढ़ और समझ सकूँगा।" अध्यापक अपने अस्त्र से स्वयं आहत हो गया। बात का रुख बदलकर बोला- "संस्कृत देववाणी है। बिना तप और साधना के उसकी प्राप्ति नहीं होती और तुम शूद्रों में उसका नितान्त अभाव है।" जयकर ने पुनः कहा--"गुरुजी ! यदि कोई विधा शूद्र को नहीं आ सकती तो एकलव्य को धनुर्वेद कैसे उपलब्ध हो गया ?' अध्यापक से अब रहा न गया। उसने जयकर को तिपाई पर खड़े रहने का दण्ड देते हुए कहा--- "जब तक तेरे मस्तिष्वत से संस्कृत पढ़ने का विचार न निकल जाये तब तक यों ही खड़ा रह। देखूगा, तुझमें पंस्कृत पढ़ने की कितनी जिज्ञासा है ? जयकर तिपाई पर पाँच दिन तक निरनर बिना हिले खड़ा रहा। न उसने कुछ खाया और न पानी पिया। उसकी इस तपस्या और लोकापवाद के भय से अध्यापक का आसन हिला और बह संस्कृत पढ़ाने प) मजबूर हुआ। जयकर का अध्ययन प्रारम्भ हुआ। संस्कृत का ज्ञान प्राप्त कर लेने के साथ उसने वैदिक विभाग में प्रवेश माँगा। इस बार अध्यापकों ने शपथ खाका इन्कार किया कि "शुद्र संस्कृत का लौकिक साहित्य तो पढ़ सकता है, वैदिक साहित्य कदापि नहीं।" जयकर का उद्देश्य ज्ञानार्जन का था, व्यर्थ विग्रह नहीं। वह सत्याग्रही था, दुराग्रही नहीं अतः उसने वैदिक कक्षा में प्रवेश के लिए हठ नहीं किया। सतत अध्ययन करके उसने संस्कृत की स्नातकोत्तर परीक्षा उच्च श्रेणी से उत्तीर्ण की और अपने ढंग से वेद वेदांगों का गहन मन्थन करने वेदान्त के एक बहुत गवेषणापूर्ण ग्रन्थ की रचना की। किन्तु इस ऊंचाई का जश्कर बिना विघ्न बाधाओं के यों ही सरलतापूर्वक नहीं पहुचं गया। ___ जयकर के संसार में आने से पूर्व उसके माता-पिता को निर्धनता देकर नियति ने प्रारम्भिक अवरोध तो पहले से ही कर रखामा दुर्भाग्य से पिताजी का अवसान हुआ तब जयकर मां की गोद में पल रहा था। जणकर को लेकर उसकी माँ अपने पिता के
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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