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आनन्द प्रवचन भाग ६
जैसे मार्ग में जब बैलगाड़ी कहीं फंस जाती है तो गाड़ीवान दो क्षण सुस्ताकर अपनी अव्यवस्थित शक्तियों को एकाग्र करुक जोर लगाता है, जिससे गाड़ी अवरोध को दूर कर बाहर आ जाती है, वैसे ही चित्त की एकनिष्ठा से कार्य करते कोई हुए अवरोध आ जाए तो व्यक्ति द्वारा अपनी सगी अव्यवस्थित शक्तियों को एकमात्र उसी अवरोध को दूर करने में लगा देने से व्यावहारिक क्षेत्र में सफलता मिलती है। आध्यात्मिक क्षेत्र के सम्बन्ध में भी यही बात है । चित्त को उसमें सम्पूर्ण रूप से नियोजित करने से समस्या हल कर ली जाती है।
मैं आपको व्यावहारिक क्षेत्र का एक उदाहरण देकर इस बात को समझा दूँ— सर वाल्टर स्काट की गणना अंग्रेजी के सर्वश्रेष्ठ लेखकों में की जाती है। प्रारम्भ में उन्हें पढ़ने का शौक था, लिखने की और कोई ध्यान न था । किन्तु यदा-कदा पढ़ते-पढ़ते वे उस पढ़े हुए पर चिन्तन-मनन करते रहते थे। इससे उनकी मौलिक विचारशक्ति जाग उठी। अब उनकी रुचि पढ़ने के साथ-साथ लिखने की ओर झुक गई। वे जो कुछ भी लिखते, उसे विविध पत्र-पत्रिकाओं में भेजते, किन्तु कई लेख वापस आने लगे, तब मित्रों ने सलाह दी – “अब लिखना बन्द कर दो। व्यर्थ समय बर्बाद न करो। " परन्तु वाल्टर एस्काट एकोनेष्ठा पर विश्वास रखते थे, इसलिए उन्होंने अपना प्रयत्न जारी रखा। जो लेख वापस आते, उन्हें वे ध्यान से पढ़ते, उनकी कमियाँ खोजते और पत्र-पत्रिकाओं में निर्धारित विषय से कहाँ विसंगति हुई, उकी छान-बीन करते रहते । यों करते-करते धीरे-धीरे लेखन में सुधार करके उन्होंने उन लेखों को प्रकाशन योग्य बना दिया। निरन्तर अभ्यास ने लेखन क्षमता बढ़ा दी और उनके लेख पत्र-पत्रिकाओं में धड़ाधड़ छपने लगे। उनती माँग भी आने लगी।
अगर वाल्टर स्कॉट प्रारम्भिक असप्तलता से हतोत्साह होकर लेखन कार्य छोड़ देते तो अवश्य ही वे इस क्षेत्र में मिलने वाली योग्यता, सफलता और श्रीसम्पन्नता से वंचित रह जाते ।
उसके पश्चात् एकनिष्ठ भाव से लिखते-लिखते उनमें पुस्तक लिखने की प्रतिभा विकसित हो गई। चे विविध विषयों पर पुस्तकें लिखने लगे। किन्तु उनकी पुस्तकें छापने को कोई तैयार नहीं हुआ। यदि को पुस्तक छप भी गई तो वह लोकप्रिय न हो सकी। पुनः असफलता और एकनिष्ठा के भीच फिर टक्कर शुरू हो गई। जब उनकी पुस्तकों से प्रकाशकों को प्रोत्साहन न मिला तो उन्होंने एक मित्र को साझीदार बनाकर प्रेस लगाया। परन्तु इस कार्य में चालाक मित्र में वाल्टर स्काट की अनभिज्ञता का दुर्लभ उठाकर उन्हें घाटे में डाल दिया। उस पर काफी कर्ज भी चढ़ गया। ऐसे समय में बड़े से बड़ा दृढ निश्चयी भी हिम्मत हार सकता था, लेकिन वे एकचित्त और एक लग्न से अपने मनोनीत क्षेत्र में जुटे रहे। पुस्तकों का प्रकाशन चलता रहा। पर वे अलोकप्रिय होकर पड़ी रही। कर्ज बढ़ता गया, लाखों के कर्जदार हो गए। फिर भी वे चट्टान की तरह अडिग रहे। क्योंकि एक निष्ठा को शक्ति से वे परिचित एवं विश्वस्त