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________________ १४६ आनन्द प्रवचन : भाग ६ ये और इस प्रकार की सैंकड़ों अवांछनीम एवं निराशाजनक कल्पनाएं करके व्यक्ति घबराहट पैदा कर लेता है। व्यवस्थित रित्त से अगर वह यह सोचे कि जो कुछ होना है, वह एक व्यवस्थित क्रम से ही होगा, फिर घबराने, व्यर्थ विलाप करने अथवा भविष्य की चिन्ता में पड़ने से क्या लाभ ? किन्तु व्यवस्थित चित्त वाला व्यक्ति इस प्रकार की ऊलजलूल कल्पनाओं के घौड़े दौड़ाक जीवन को अस्त व्यस्त बना लेता है, व्यर्थ की कठिनाई में अपने आपको पीड़ित अनुभव करता रहता है। समय पर प्रायः सभी के कार्य पूरे हो जाते हैं। इसीलिए व्यक्ति को प्रयास जारी रखना चाहिए, परन्तु चित्त में व्यर्थ की घबराहट पैदा करके कार्य को बोझिल बना देना उचित नहीं। आपका चित भारमुक्त होगा तो आप अधिक रुचि और जागृति के साथ व्यावहारिक एवं आध्यात्मिक सभी कार्य कर सकेंगे और वे कार्य श्रीयुक्त (शोभास्पद) बनेंगे। घबराने वाले व्यक्ति फूहड़ माने जाते हैं। वे श्रम भी करते हैं और कार्य भी बिगाड़ते हैं, या कार्य सही नहीं होता। अगर कार्य सही है तो चित्त पर घबराहट का बोझ न डालिए। आप उसके फल की परवाह किये बिना करते जाइए। कई लोगों को अवांछनीय कल्पना करने के कारण चित्त में समस्या का यथार्थ समाधान या हल नहीं मिल पाता। चित्त की अव्यवस्थितता के कारण ऐसे व्यक्ति के विचार जब लड़खड़ा जाते हैं, तब दिनचर्या और कार्यक्रम भी कुछ गड़बड़ा जाते हैं, और उलटे परिणाम निकलते हैं। सवारी पाने की जल्दी में सामान पीछे छूट जाता है, स्वागत की तैयारी में कई महिलाओं को ध्यान ही नहीं रहता, उधर भोजन जल जाता है। कई बार इसी झोंक में वे इतनी बेभान हो जाती हैं कि चूल्हे या स्टोव की आग से उनके कपड़े जल जाते हैं, या घर में आग लाम जाती है। इसलिए नियम यह है कि प्रत्येक कार्य एक व्यवस्था के साथ हो। एक कार्य जब चल रहा है तो बीच में दूसरे विचार को चित्त में स्थान देने की क्या आवश्कता है ? एक बार में एक ही विचार और कार्य शोभास्पद होता है। हड़बड़ाने से साग ही खेल चौपट हो सकता है। चित्त में उदासी, खिन्नता या अप्रसन्नता के वास्तविक कारण बहुत ही कम होते हैं, अधिकांश कारण घबराहट से उत्पन्न भय ही होता है और मनुष्य जाने-अनजाने इससे अपनी बहुत सी शारीरिक एवं मानसिक शक्तियों को बर्बाद करता रहता है। जिन्होंने जीवन में बड़ी बड़ी सफलताएं या विजयश्री पाई हैं, उन सबके चित्त सुव्यवस्थित रहे हैं, जिससे उनकी प्रत्येक प्रवृत्तिक्रमबद्ध और सुचारू रही है। जिनके चित्त में विशृंखलता होती है उनके पास सदैव समय की कमी की शिकायत रहती है। फिर भी अन्त तक वे धवन-पचकर सिर्फ एक-दो कार्य ही कर पाते हैं। परन्तु जिन लोगों ने व्यवस्थित चित्त से विधि पूर्वक चिन्ताविमुक्त होकर धैर्य से कार्य प्रारम्भ किये, उन्होंने सैंकड़ों कार्य ठीक किए, सफलताएँ अर्जित की, श्रीसम्पन्नता भी प्राप्त की, जो सामान्य व्यक्ति के लिए चमकार सी लग सकती हैं अतः श्री सम्पन्नता चाहने वाले व्यक्ति के लिए उचित है कि वह चित्त से उलझन, भय, घबराहट आदि
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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