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संभिनचित्त होता श्री से वंचित : २
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अतः वह घर चलने का आग्रह करने लगी। पर वह न तो भंगिन की तरफ देखता, न बोलता। अब उसे राजकुमारी की भी कोई स्माते या आकर्षण नहीं रहा। बस, एक ही धुन भगवान की लग गई।
आखिर राजा-रानी और राजकुमारी के पास भी यह खबर पहुंची। भंगिन ने भी राजकुमारी से कहा। दूसरे दिन राजा, रानी और राजकुमारी वटवृक्ष के नीचे योगी की तरह समाधिस्थ बैठे हुए भंगी के पास पहुंचे, दर्शन किये। पर वह तो आँख उठाकर भी नहीं देखता था। तब राजा-रानी तथा अन्य लोगों के इधर-उधर हो जाने पर राजकुमारी ने उसके निकट निवेदन किया-'"जिसको तुम पहले याद कर रहे थे, वह मैं राजकुमारी अपने वायदे के अनुसार आ गई हूँ।" पर भंगी तो अब प्रभु में इतना तल्लीन हो चुका था कि वह अन्यत्र बिल्कुल झांकता या कुछ कहता न था। जब राजकुमारी ने उसे झकझोरकर कहा--"चली, न अब ! मैं आ गई हूँ।" तब उसने धीरे से कहा-"अब मुझे कुछ नहीं चाहिए | जो चाहिए था, वह (भगवान) मुझे मिल गया है।"
बन्धुओ ! भंगी के चित्त की एकाग्रतापहले निम्न कोटि के लक्ष्य में थी, लेकिन बाद में वह उचकोटि के लक्ष्य-भगवान में हो गई, तब उसके सामने सभी सांसारिक आकर्षण समाप्त हो गये। इस प्रकार की चिफ की एकाग्रता से तीन लोक की सम्पदा के तुल्य प्रभु मिल जाते हैं, शुद्ध आत्मा से मिला हो जाता है।
जैसा कि उत्तराध्ययन सूत्र (अ० २६ में आध्यात्मिक क्षेत्र में चित्त की एकाग्रता से लाभ बताया है-एगग्गचित्तेणं जीवे मणगुने संजमाराहए भवए ।
'एकाग्रचित से जीव मनोगुप्ति का और संयम का आराधक हो जाता है।'
जिसके चित्त में एकाग्रता नहीं होतो उसे कहीं भी सफलता नहीं मिलती। अनेकाग्रचित्त व्यक्ति को सफलता, विजयश्री या सिद्धि मिलनी कठिन है।
एकाग्रता से सम्बन्धित गुण है संलना। उसका अर्थ है,जिस लक्ष्य में चित्त को एकाग्र किये, उसमें उसे लगाये रखे। संलपता सतत लगे रहने का नाम है। जिसका चित्त निश्चित ध्येय या कार्य में संलग्न न रहता, उस संभिन्नचित व्यक्ति से सिद्धि, विजयश्री या सफलता कोसों दूर रहती है !
संभिन्नजित्त का पाँचवाँ अर्थ : अव्यवस्थित चित्त एक व्यक्ति है, वह किसी लक्ष्य को पाने का इच्छुक है, परन्तु वह व्यवस्थित रूप से अपने चित्त को उसमें नहीं लगाता, वह कुछ न कुछ करता रहता है, पर विचारपूर्वक कुछ नहीं करता। यही अव्यवस्थित गित्त का लक्षण है। एक युवक से पूछा गया-'जीवन का वास्तविक उद्देश्य क्याहै ?" उसने उत्तर दिया-"यह तो मैं नहीं जानता, किन्तु सच्चे और कठोर परिश्रम में मुझे विश्वास है। मैं अपने समस्त जीवन भर सुबह से साम तक जमीन खोदता ही रहूँगा। मैं जानता हूँ कि उसमें कुछ भी–सोना,