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आनन्द प्रवचन : भाग ६
बतलाया- "कल जब से मैंने राजकुमारी को देखा है, तब से मेरे मन में बह वस गई है। वह मिले, तभी मुझे चैन पड़ेगा।"
भंगिन ने कहा-"छोड़ो इस पागलपन कॉ। राजकुमारी तुम्हें कहाँ से मिलेगी ? कहाँ वह, कहाँ तुम ? कोई सुनेगा तो क्या कहेगा ?" "किसी तरह से तू उससे मिला दे, फिर मैं ठीक हो जाऊंगा।" भंगी ने अपनी पानी से कहा।
वह मन मसोसकर राजमहल में सफाई की गई। वहाँ राजकुमारी मिली। उसने पूछा--"आज तेरा पति क्यों नहीं आया ?" अने राजकुमारी को इशारे से एक ओर बुलाकर अश्रु बहाते हुए कहा- "वह तो कता से न खाता है, न पीता है, न सोता है। एक ही धुन लगी है उसे।"
राजकुमारी ने पूछा--"क्या धुन लामो है ?" भंगिन ने शर्माते हुए कहा-"क्या कहूँ, कहते हुए लज्जा आती है। गर न कहूँ तो उनकी तबियत दिन पर दिन बिगड़ती ही जाएगी। फिर सदा के लिए मरे से बिछुड़ जाएँ, मुझे यही भय है। उन्होने कल जब से आपको देखा है, तब से एक ही धुन लगी है कि मुझे राजकुमारी मिल जाए। क्या कोई उपाय हो सकता है राजबुमारी जी!"
राजकुमारी बहुत समझदार थी। उसने भंगी के चित्त की व्यथा को समझ लिया। बात तो प्रायः संभव नहीं थी। पर राजकुमारी ने सोचा-"जिसका चित्त मुझमें इतना एकाग्र हो गया है, उसके चित्त को परमामा में एकाग्र होते क्या देर लगेगी?" अतः राजकुमारी ने भंगिन से कहा- "मैं उससे तभी मिल सकती हूँ, जब वह भगवान में अपनी ली लगा देगा, तन्मय हो जाएगा।" भंगिन आभार मानती हई घर आई। आते ही भंगी ने पूछा--"मेरा काम कर आ. हो ?" उसने कहा-"हाँ, काम हो जाएगा। राजकुमारी तुमसे मिलेगी, पर एक ही शर्त है, जब तुम भगवान में पूरी तरह से अपनी लौ लगा दोगे।"
भंगी ने सुनकर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा--"यह काम तो मेरे लिए आसान है। तब तो वह मिल जाएगी न?"
भंगिन बोली--"हाँ-हाँ, उसने वचन दिया है। भंगी थोड़ा सा खा-पीकर घर से चल पड़ा और पहुँचा गांव के बाहर एक वट Fक्ष के नीचे। वहाँ उसने अपना आसन जमाया और राम-राम (भगवान) का जाप करने बैठा। वह जाप में इतना मस्त हो गया कि उसे और किसी बात की सुध न रही। उत्ताकी पत्नी घर से भोजन लेकर आती. पर वह यों ही पड़ा रहता। न वह भोजन करता, न पानी पीता और न ही किसी से वोलता। एक-एक करके आठ दिन व्यतीत हो गए। भंगी परमात्मा में पूरा तन्मय हो गया।
गाँव के लोगों को पता लगा तो महात्मा समझकर झुंड के झुंड दर्शन करने आने लगे, प्रसाद भी चढ़ा जाते । पर वह न तो किसी की ओर देखता, न प्रसाद ही उदर में डालता। भंगिन ने सोचा कहीं कुछ और हो गया तो और मेरे जी को परेशानी होगी।