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संमिन्नचित्त होता श्री से वंचित : २
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प्रत्येक विचारशील साधक को अपना चित्त सष ओर से हटाकर अपने लक्ष्य, अभीष्ट कार्य में एकाग्र, तन्मय करना चाहिए, तभी क सिद्धि, सफलता या विजयश्री को प्राप्त कर सकेगा।
एकाग्रता में बड़ी अद्भुत शक्ति है। साधक अपना अभीष्ट लक्ष्य-ध्येय निश्चित करके चित्त को उसमें ओत-प्रोत कर दे, उसके साथ जोड़ दे, चित्त सतत ध्येय (लक्ष्य) में संलग्न रहे, जब भी वह ध्येय से छूटने या बछुड़ने लगे, कोई विकल्प आ जाए तो जागृत साधक चित्त को वहाँ से हटा दे, उसे वींचकर पुनः ध्येय में जोड़ दे, चित्त का समाहार कर ले, तो चित्त को महान् शक्ति प्राप्त हो जाती है।
जैसे चर्खा चलाने वाला देखता रहता है कि कोई भी सूत की पूनी का तार न टूटे। अगर तार टूट जाता है तो वह पुनः उससे जोड़ देता है। इसी प्रकार चित्त का तार न टूटेः बह एक ही ध्येय पर सतत चलका रहे, क्रम न टूटे , टूटे तो तत्काल उसे जोड़ दिया जाए, यही है चित्त की एकाग्रता, नवत्त की संलग्रता या समाधि।
इसकी साधना यह है कि चित्त को अ भूमिका पर ले जाना, जहां पहुंचने पर उसके आगे और कोई भूमिका नहीं, उसी लन्यभूत भूमिका में इतना अधिक आकर्षण होता है, कि उसमें अन्य सभी आकर्षण समा जाते हैं, उस एक आकर्षण के सिवाय सारे आकर्षण समाप्त हो जाते हैं। यह उत्तुष्ट एकाग्रता की भूमिका है, यही चित्त समाधि है। इस भूमिका पर आरुढ़ साधक के सामने कोई भी वासना, लालसा, समस्या, द्वन्द्व या आकांक्षा आदि नहीं रहती। साधक इन सबको पार कर जाता है।
परन्तु इस परम एकाग्रता के लिए साधक का ध्येय उच्च होना चाहिए, नीचा नहीं। एकाग्रता एक शक्ति है, वह उच्च ध्येय में भी काम करती है. नीचे ध्येय में भी। वह तो अपना चमत्कार दिखाएगी। चित्त को निम्न ध्येय में एकाग्र करने पर नीचे स्तर का विस्फोट होगा। वह चेतना के प्रवाह वन नीचा ले जाएगा। इसलिए साधक को अपने निश्चित एक उच्च ध्येय की धारा में काकर चित्त को ऊर्ध्व भूमिका पर ले जाना चाहिए।
एक भंगी था। वह राजमहल की सपतई करता था। संयोगवश एक दिन उसने राजकुमारी को देखा। उसका रूप, लावण्य, शरीर-सौष्ठव आदि देखकर वह उस पर मोहित हो गया। उसके चित में राजकुमारी बस गई। राजमहल की सफाई करके वह घर आया, किन्तु उसका चित्त राजकुमारी के पाने के लिए व्यग्र हो गया। खाना-पीना, नींद लेना आदि सब छोड़ दिया। उसे कोई भी अन्य काम नहीं सुहाता था। एक ही धुन लग गई। जब दूसरे दिन वह काम पा नहीं जाने लगा तो उसकी पली ने उसे झकझोर कर कहा--"क्या हुआ है, तुमको आज? काम पर क्यों नहीं जाते ? चलो, उठो देर हो रही है।" जब बार-बार हिला पर भी यह नहीं उठा तो उसने दुःखित होते हुए पूछा-"क्या हुआ है तुमको ? मुई तो बतला दो।"
बहुत आग्रह करने और उसका वांछिा पूर्ण करने का वायदा करने पर भंगी ने